सिर्फ़ इसलिए गवाही खारिज नहीं की जा सकती क्योंकि गवाह को होस्टाइल घोषित कर दिया गया: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-12-09 04:50 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 दिसंबर) को कहा कि किसी गवाह की गवाही सिर्फ़ इसलिए पूरी तरह खारिज नहीं की जा सकती, क्योंकि उसे होस्टाइल गवाह घोषित कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि गवाही का वह हिस्सा जो प्रॉसिक्यूशन या डिफेंस के केस से मेल खाता है, उसे स्वीकार किया जा सकता है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने उस केस की सुनवाई की, जिसमें अपील करने वालों को ट्रायल कोर्ट ने इंडियन पैनल कोड (IPC) की धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना) और 354 (शील भंग करना) के साथ-साथ SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) के तहत दोषी ठहराया था। प्रॉसिक्यूशन के केस में आरोप लगाया गया कि अपील करने वाले-आरोपी पीड़िता के घर पर आए, उसका दुपट्टा खींचा, उसके भाई पर हमला किया,और यह जानते हुए भी कि वह अनुसूचित जाति से है, ये काम किए। ट्रायल कोर्ट और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सज़ा बरकरार रखी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।

हालांकि, PW-4, जो पीड़िता और उसके भाई का रिश्तेदार है, जिसे प्रॉसिक्यूशन ने होस्टाइल घोषित किया, उन्होंने एक अलग कहानी पेश की। उसने कहा कि घटना पीड़िता के घर पर नहीं हुई थी, बल्कि एक भीड़ भरे गणेश पूजा पंडाल में हुई थी, जहां पीड़िता के भाई (PW-2) को लगा कि आरोपी ने उसके पैरों पर पैर रख दिया है, जिसके बाद हाथापाई शुरू हो गई।

PW-4 के अनुसार, यह हाथापाई झगड़े की असली वजह थी, न कि पीड़िता के घर पर हुई कथित घटनाएं। पब्लिक प्रॉसिक्यूटर द्वारा क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान भी PW-4 अपनी बात पर अड़ा रहा और इस बात से इनकार किया कि आरोपी ने प्रॉसिक्यूशन द्वारा बताए गए तरीके से PW-2 पर हमला किया था।

सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ज़रूरी बात सामने आई कि अपील करने वाले की सज़ा बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने PW-4 की गवाही को वेटेज देने से इनकार किया और उसे प्रॉसिक्यूशन के प्रति होस्टाइल घोषित कर दिया था।

हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए जस्टिस दत्ता के लिखे फैसले में कहा गया कि हाईकोर्ट ने PW-4 की गवाही को पूरी तरह से खारिज करके गलती की, उसे होस्टाइल घोषित किया। कोर्ट ने कहा कि होस्टाइल गवाह की गवाही अभी भी मानी जा सकती है और उसमें सच्चाई वाले हिस्सों की जांच होनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि PW-4 का घटनाओं का दूसरा वर्जन पेश करना अपने आप में उसके सबूत को खारिज करने का कोई सही आधार नहीं था, खासकर तब जब पूरे ट्रायल के दौरान उसकी बातें एक जैसी रहीं।

कोर्ट ने यूपी राज्य बनाम रमेश प्रसाद मिश्रा, (1996) 10 SCC 360 का हवाला देते हुए कहा,

“यह तय कानून है कि अगर किसी होस्टाइल गवाह का सबूत प्रॉसिक्यूशन या आरोपी के पक्ष में कहा गया हो तो उसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाएगा। बल्कि इसकी और गहराई से जांच होनी चाहिए और सबूत का वह हिस्सा जो प्रॉसिक्यूशन या बचाव पक्ष के केस से मेल खाता है, उसे स्वीकार किया जा सकता है। PW4 के सबूत को सिर्फ़ इस तरह से खारिज करना इस कोर्ट के बनाए कानून के खिलाफ है।"

ऊपर बताई गई बातों के हिसाब से कोर्ट ने अपील स्वीकार की और अपीलकर्ता को बरी कर दिया।

Cause Title: DADU @ ANKUSH & ANR. VS. STATE OF MADHYA PRADESH & ANR.

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