आतंकवाद के दोषी ने ISIS को आतंकवादी संगठन घोषित करने वाली सरकारी अधिसूचनाओं को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
आतंकवाद के दोषी साकिब नाचन द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 सप्ताह बाद सुनवाई करने वाला है, जिसमें इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) और अन्य को आतंकवादी संगठन घोषित करने वाली दो सरकारी अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग की गई।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने याचिकाकर्ता साकिब नाचन (जो तिहाड़ जेल से वर्चुअली पेश हुए) की सुनवाई शुरू की, लेकिन मामले को स्थगित करना पड़ा, क्योंकि बाद वाले का ऑनलाइन कनेक्शन टूट गया और वह अब सुनाई नहीं दे रहा था। इसे 2 सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया गया, जिस समय जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता के पास उचित ऑनलाइन कनेक्शन उपलब्ध हो।
साकिब नाचन को 2002-03 के बीच तीन मुंबई बम धमाकों के सिलसिले में दोषी ठहराया गया और 10 साल जेल की सजा सुनाई गई। 2017 में उनकी सजा पूरी होने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। वर्ष 2023 में NIA ने पुणे ISIS मॉड्यूल से संबंधित एक मामले में उसे गिरफ्तार किया।
उसने 16.02.2015 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी, जिसमें कहा गया,
"इराक और पड़ोसी देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट/इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट/इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया/दाइश, उस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए आतंकवादी कार्रवाइयों का सहारा ले रहा है। इसके लिए वह 'वैश्विक जिहाद' के लिए युवाओं की भर्ती कर रहा है, जिससे लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों को उखाड़ फेंककर अपनी खुद की 'खिलाफत' स्थापित करने के उद्देश्य को प्राप्त कर सके। साथ ही निर्दोष नागरिकों और सुरक्षा बलों की हत्या के रूप में आतंकवाद का सहारा ले रहा है।"
सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने सहायता के लिए एक वकील को एमिक्स क्यूरी नियुक्त करने की पेशकश की। जवाब में याचिकाकर्ता ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से मामले पर बहस करना चाहता है। हालांकि, अगर अदालत उचित समझे तो एमिक्स क्यूरी नियुक्त कर सकती है।
दलीलें शुरू करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने गृह मंत्रालय द्वारा जारी दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी। एक 16.02.2015 की और दूसरी 2018 की, जिसके तहत कुछ संगठनों को गैरकानूनी और "आतंकवादी संगठन" घोषित किया गया।
जस्टिस कांत ने दलील सुनने के बाद पूछा,
"आप चाहते हैं कि हम यह घोषित करें कि ISIS, ISIL, इन्हें आतंकवादी संगठन नहीं माना जाना चाहिए?"
यह स्पष्ट करते हुए कि वह किसी संगठन की ओर से आंदोलन नहीं कर रहे थे, याचिकाकर्ता ने बताया कि 11.08.2023 को उनके बेटे को राष्ट्रीय जांच एजेंसी के मामले में गिरफ्तार किया गया।
उन्होंने आग्रह किया,
"जब आरोपपत्र दाखिल किया गया तो मुझे पता चला कि उसे ISIS संगठन के तहत एक मामले में फंसाया गया।"
याचिकाकर्ता ने बताया कि उनकी आपत्ति पवित्र कुरान और खिलाफत की कुछ विचारधाराओं और शब्दावली को "लक्ष्यित" करने के बारे में है:
"सरकार किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगा सकती है, मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मुझे इस बात पर सख्त आपत्ति है कि सरकार कुरान की विचारधाराओं को लक्षित नहीं कर सकती। यह कह सकती है कि यह संगठन इस्लाम के नाम पर आतंकवादी गतिविधियां कर रहा है, या ऐसा ही कुछ, लेकिन वे यह नहीं कह सकते कि जिहाद चल रहा है और खिलाफत की स्थापना की जा रही है। मुझे लगता है कि अनुच्छेद 25 की गारंटी का उल्लंघन किया गया।"
जस्टिस कांत ने जवाब दिया कि याचिका के अनुसार, यह वह राहत नहीं थी, जिसकी मांग की जा रही थी। याचिकाकर्ता ने अपने बेटे की गिरफ्तारी को कहीं भी चुनौती नहीं दी। न्यायाधीश ने आगे सवाल किया कि याचिकाकर्ता के मामले में अनुच्छेद 25 की गारंटी का उल्लंघन कैसे हुआ।
इस बिंदु पर याचिकाकर्ता ने न्यायालय का ध्यान विवादित अधिसूचनाओं में निहित कुछ कथनों की ओर आकर्षित करते हुए कहा,
"इसमें कहा गया कि ISIS वैश्विक जिहाद के लिए भर्ती कर रहा है, यह कह सकता है कि वे आतंकवादी गतिविधियां कर रहे हैं। लेकिन यह नहीं कह सकता कि यह वैश्विक जिहाद है।"
उन्होंने तर्क दिया कि पवित्र कुरान को "बदनाम और लक्षित" किया गया। परिणामस्वरूप, एक विशेष समुदाय का उत्पीड़न हो रहा है।
पीठ ने पूछा कि क्या याचिका जनहित में दायर की गई, या व्यक्तिगत राहत की मांग की गई तो याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि यह व्यक्तिगत राहत की मांग कर रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वर्तमान याचिका दायर करने के 3 दिनों के भीतर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
याचिकाकर्ता ने आग्रह किया,
"किसी पद पर बैठा व्यक्ति किसी ऐसी चीज़ को 'जिहाद' कैसे कह सकता है जिसे वह आतंकवाद समझता है। इसी तरह, वे खिलाफत के बारे में बात कर रहे हैं।"
जस्टिस दत्ता ने इस बिंदु पर याचिकाकर्ता से उनकी याचिका में अधिसूचनाओं में निहित "आपत्तिजनक" शब्दों (जिहाद और खिलाफत) के बारे में विशिष्ट कथनों की कमी पर सवाल उठाया। "पवित्र कुरान इन दो शब्दों के बारे में क्या कहता है? आपने अपनी याचिका में ऐसा कहां कहा है?"
याचिकाकर्ता ने कुरान की आयतों का उल्लेख करना शुरू किया तो पीठ ने उन्हें समझाया कि उनकी आपत्तियों के बारे में विशिष्ट कथन याचिका में गायब थे। अदालत केवल याचिका से ही उनके मामले का पता लगा सकती है (जिस सामग्री का वह उल्लेख कर रहे थे वह रिकॉर्ड में नहीं है)।
जस्टिस दत्ता ने कहा,
"आप किसी संदर्भ से पढ़ रहे हैं जो हमारे पास नहीं है...यह याचिका में नहीं कहा गया।"
जस्टिस कांत ने पूरक करते हुए कहा,
"अब आपके पास कोई किताब है, जहां से आप पृष्ठ 110 कह रहे हैं या हम नहीं जानते कि यह पवित्र कुरान पर टिप्पणी है या पवित्र कुरान ही है... या आप किसी लेखक की किताब पढ़ रहे हैं... या कोई अनुवाद...मुद्दा यह है कि आप जो भी तर्क दे रहे हैं, आपने अपनी याचिका में इस बारे में कुछ नहीं कहा, जो हमारे सामने है। हम आपके मामले को केवल उस याचिका से ही समझ सकते हैं, जो आपने दायर की।"
इसके बाद चूंकि याचिकाकर्ता का ऑडियो खो गया, इसलिए मामले को स्थगित कर दिया गया।
केस टाइटल: साकिब अब्दुल हामिद नाचन बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1362/2023