कमीशन के दौरान महिला वकील को बंदूक से धमकाने वाले व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा – तुम जेल जाने लायक हो

Update: 2025-11-03 11:11 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सख्त रुख अपनाते हुए उस व्यक्ति को फटकार लगाई, जिसने कथित तौर पर एक महिला वकील, जो कोर्ट कमिश्नर के रूप में नियुक्त थीं, को आयोग की कार्यवाही के दौरान पिस्टल दिखाकर धमकाया था। अदालत ने उस व्यक्ति — नितिन बंसल — को आदेश दिया कि वह 6 नवंबर को जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करे, इसके बाद ही उसकी याचिका पर विचार किया जाएगा। यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई एक महीने की सजा से जुड़ा है, जिसे आरोपी ने चुनौती दी थी। सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस जॉयमल्या बघची की खंडपीठ ने की, और इसे अब 11 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के व्यवहार पर कड़ी नाराज़गी जताई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आरोपी को जेल में होना चाहिए और महिला वकील (लोक आयुक्त) ने अत्यधिक उदारता दिखाई, क्योंकि वह चाहतीं तो इससे कहीं गंभीर शिकायत दर्ज करा सकती थीं। अदालत ने इस बात पर भी चिंता जताई कि आरोपी ने यह सब पुलिस की मौजूदगी में किया। अदालत ने कहा कि यदि पुलिस वहां न होती, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती थी।

जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की,

“ऐसे व्यवहार के बावजूद, जिसके लिए हाईकोर्ट को और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी, उसे इतनी आसानी से छोड़ दिया गया। उसकी याचिका में पछतावे का एक शब्द तक नहीं है। उल्टा वह स्थानीय कमिश्नर को ही झूठा ठहरा रहा है। यह व्यक्ति अदालत में झूठ बोल रहा है और कोर्ट को गुमराह कर रहा है। फिर भी अपील दाखिल करता है — क्यों न उसकी सजा बढ़ा दी जाए?”

आरोपी की ओर से सीनियर एडवोकेट शादन फराजत पेश हुए। उन्होंने कहा कि घटना के समय पांच पुलिस अधिकारी मौजूद थे, इसलिए डराने-धमकाने का कोई प्रश्न नहीं उठता। उन्होंने यह भी कहा कि जिस “पिस्टल” की बात की जा रही है, वह दरअसल एक एयर गन (खिलौना बंदूक) थी, जो मेज़ पर पहले से रखी थी और आरोपी ने उसे उठाया भी नहीं।

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा —

“सोचिए, पाँच पुलिसकर्मी मौजूद थे, फिर भी यह व्यक्ति इतना हंगामा कर सका। शुक्र है कि पुलिस वहाँ थी, वरना यह व्यक्ति उस महिला अधिकारी को शारीरिक नुकसान भी पहुँचा सकता था।”

जब बचाव पक्ष ने कहा कि आरोपी माफी मांगने के लिए तैयार है, तो अदालत ने दो टूक कहा —

“पहले यह व्यक्ति जेल जाए। जब तक यह आत्मसमर्पण नहीं करता, हम कुछ नहीं सुनेंगे। उसने महिला वकील से बदसलूकी की, लेकिन उन्होंने बहुत संयम और गरिमा दिखाई।”

बेंच ने यह भी कहा कि आरोपी ने हाईकोर्ट को गुमराह करने की कोशिश की, यह दावा करके कि बंदूक “खिलौना” थी। जस्टिस बघची ने कहा —

“यह व्यक्ति अदालत के अधिकारी को डराने का प्रयास कर रहा था और फिर बहाना बनाकर कहता है कि यह टॉय गन थी। यह जानबूझकर किया गया है। उसे जेल में होना चाहिए।”

फराजत ने आगे तर्क दिया कि आरोपी को बोलने में कठिनाई है और शायद महिला अधिकारी ने उसकी बात का गलत अर्थ लगा लिया हो। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा —

“आप इतने अनुभवी हैं, और ऐसा तर्क दे रहे हैं? महिला वकील ने ईमानदारी से हर बात बताई है। यह व्यक्ति तो अपने ही वकील का सम्मान नहीं करता।”

अंत में अदालत ने आदेश पारित किया —

“अंतरिम राहत देने का कोई आधार नहीं बनता। याचिकाकर्ता पहले 6 नवंबर को जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करे, उसके बाद ही आगे सुनवाई की जाएगी।”

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट की स्वतः सज्ञान अवमानना कार्यवाही से जुड़ा है। विवाद 30,000 टन औद्योगिक कोयले के निपटान को लेकर था। हाईकोर्ट ने आरोपी नितिन बंसल के पिता को कोयले से संबंधित किसी भी कार्य से रोक दिया था। बाद में एक महिला लोक आयुक्त को नियुक्त किया गया, जिन्होंने पुलिस अधिकारियों के साथ जुलाई 2024 में फरीदाबाद स्थित परिसर का दौरा किया।

रिपोर्ट में लोक आयुक्त ने बताया कि आरोपी ने असहयोगी रवैया अपनाया और उन्हें धमकाने का प्रयास किया। कार्यवाही के दौरान आरोपी ने मेज़ पर एक पिस्टल रखी, जिसे पुलिस ने जब्त कर लिया। बाद में पता चला कि वह वास्तविक बंदूक थी, न कि खिलौना जैसा आरोपी दावा कर रहा था।

हाईकोर्ट ने कहा —

“आरोपी का यह दावा पूरी तरह झूठा और भ्रामक था। उसने अदालत को जानबूझकर गुमराह करने की कोशिश की ताकि सजा से बच सके।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि लोक आयुक्त अदालत का ही विस्तार होती हैं, और आरोपी ने कानून की बार-बार अवहेलना की। अदालत ने टिप्पणी की —

“आरोपी में कोई पश्चाताप नहीं दिखता। उसकी माफी केवल औपचारिकता है। उसका असहयोगी रवैया और कार्यवाही के दौरान बंदूक रखना यह दर्शाता है कि उसका उद्देश्य अदालत की कार्यवाही में बाधा डालना था।”

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