BREAKING | सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब बैन के फैसले पर रोक लगाई

Update: 2024-08-09 09:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के प्राइवेज कॉलेज द्वारा जारी किए गए निर्देश पर रोक लगा दी, जिसमें परिसर में स्टूडेंट द्वारा हिजाब, टोपी या बैज पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया।

मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के स्टूडेंट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कॉलेज के निर्देशों को बरकरार रखा गया था।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने कॉलेज द्वारा लगाई गई इस शर्त पर शुरुआत में आश्चर्य व्यक्त किया।

कॉलेज के तर्क का हवाला देते हुए जस्टिस खन्ना ने पूछा कि यह नियम इसलिए लगाया गया था, जिससे स्टूडेंट का धर्म उजागर न हो,

"यह क्या है? ऐसा नियम न लगाएं...यह क्या है? धर्म का खुलासा न करें?"

जस्टिस कुमार ने पूछा,

"क्या उनके नाम से धर्म का पता नहीं चलेगा? क्या आप उन्हें संख्याओं से पहचानने के लिए कहेंगे?"

जस्टिस खन्ना ने कहा,

"उन्हें साथ में पढ़ने दें।"

कॉलेज का प्रतिनिधित्व करने वाली सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान ने कहा कि यह निजी संस्थान है तो जस्टिस कुमार ने पूछा कि कॉलेज कब से चल रहा है।

एडवोकेट ने जवाब दिया कि कॉलेज 2008 से अस्तित्व में है तो जस्टिस कुमार ने पूछा,

"इतने सालों में आपको निर्देश नहीं मिले और अचानक आपको एहसास हुआ कि धर्म है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने सालों बाद आप इस तरह के निर्देश लेकर आए हैं।"

जस्टिस खन्ना ने दीवान से पूछा,

"क्या आप कहेंगे कि तिलक लगाने वाले को अनुमति नहीं दी जाएगी?"

दीवान ने कहा कि 441 मुस्लिम स्टूडेंट "खुशी से" कॉलेज में आ रहे हैं और आपत्ति केवल कुछ मुस्लिम स्टूडेंट द्वारा उठाई गई थी। उन्होंने कहा कि चेहरा ढकने वाले नकाब/बुर्का बातचीत में बाधा डालते हैं। खंडपीठ ने सहमति व्यक्त की कि कक्षा में चेहरा ढकने वाले नकाब की अनुमति नहीं दी जा सकती और नकाब के उपयोग को रोकने वाले निर्देशों के उस हिस्से में हस्तक्षेप नहीं किया।

सीनियर एडवोकेट डॉ. कॉलिन गोंजाल्विस ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया।

खंडपीठ ने 18 नवंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में जवाब देने योग्य याचिका पर नोटिस जारी किया। आदेश में खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि स्थगन आदेश का किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए और कॉलेज अधिकारियों को इस तरह के किसी भी दुरुपयोग की स्थिति में आदेश में संशोधन की मांग करने की अनुमति दी।

संक्षेप में, 26 जून को बॉम्बे हाईकोर्ट ने एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के अधिकारियों द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड को चुनौती देने वाली नौ स्टूडेंट द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें स्टूडेंट को परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी आदि पहनने से प्रतिबंधित किया गया।

जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस राजेश एस पाटिल की खंडपीठ ने कहा -

"ड्रेस कोड निर्धारित करने के पीछे का उद्देश्य निर्देशों से स्पष्ट है, क्योंकि वे कहते हैं कि इरादा यह है कि किसी छात्र का धर्म प्रकट नहीं होना चाहिए। यह स्टूडेंट के व्यापक शैक्षणिक हित के साथ-साथ कॉलेज के प्रशासन और अनुशासन के लिए भी है कि यह उद्देश्य प्राप्त किया जाए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि स्टूडेंट से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने शैक्षणिक करियर को आगे बढ़ाने के लिए उचित निर्देश प्राप्त करने के लिए शैक्षणिक संस्थान में जाएं। ड्रेस कोड का पालन करने का आग्रह कॉलेज परिसर के भीतर है। याचिकाकर्ताओं की पसंद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्यथा प्रभावित नहीं होती है।”

हाईकोर्ट ने रेशम बनाम कर्नाटक राज्य में कर्नाटक हाई कोर्ट के फुल बेंच के फैसले का हवाला दिया, जिसने हिजाब को छोड़कर ड्रेस कोड निर्धारित करने वाला सरकारी आदेश बरकरार रखा।

हाईकोर्ट ने कहा,

“हम फुल बेंच द्वारा व्यक्त किए गए दृष्टिकोण से सम्मानजनक रूप से सहमत हैं कि ड्रेस कोड निर्धारित करने का उद्देश्य स्कूल/कॉलेज में स्टूडेंट के बीच एकरूपता प्राप्त करना है, जिससे अनुशासन बनाए रखा जा सके और किसी के धर्म का खुलासा न हो।”

कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने वाला मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, क्योंकि खंडपीठ ने अक्टूबर 2022 में खंडित फैसला सुनाया था।

अपने दूसरे और थर्ड ईयर ग्रेजुएट कोर्स में अध्ययनरत याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर ड्रेस कोड को चुनौती दी कि परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी आदि पर प्रतिबंध उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। विवादित ड्रेस कोड के तहत स्टूडेंट की पोशाक औपचारिक और सभ्य होनी चाहिए तथा इससे किसी भी स्टूडेंट का धर्म उजागर नहीं होना चाहिए।

स्टूडेंट का तर्क है कि ड्रेस कोड मनमाना और भेदभावपूर्ण है, जो उनके पोशाक चुनने के अधिकार, निजता के अधिकार, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

यह याचिका एडवोकेट हमजा लकड़वाला द्वारा तैयार की गई तथा एडवोकेट अबीहा जैदी के माध्यम से दायर की गई।

केस टाइटल: जैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटीज एवं अन्य, डायरी नंबर 34086-2024

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