सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (19 फरवरी) को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ 2022 में तत्कालीन ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री केएस ईश्वरप्पा के इस्तीफे की मांग को लेकर आयोजित विरोध मार्च पर आपराधिक मामले की कार्यवाही पर रोक लगाई।
न्यायालय ने इसी विरोध प्रदर्शन को लेकर वर्तमान राज्य मंत्री रामलिंगा रेड्डी और एमबी पाटिल और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के खिलाफ कार्यवाही पर भी रोक लगाई।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सिद्धारमैया और अन्य के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार किया गया था।
सिद्धारमैया की ओर से पेश सीनिययर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह "राजनीतिक विरोध" था और आपराधिक मामला संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत विरोध करने के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि बिना किसी आपराधिक इरादे के शांतिपूर्वक किए गए राजनीतिक विरोध को दंडात्मक प्रावधानों का उपयोग करके दबाया नहीं जा सकता।
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि उस मामले में सामान्य जीवन को बाधित करने वाले सड़क पर हर सार्वजनिक विरोध को अनुच्छेद 19(1)(ए) के आधार पर अनुमति दी जानी चाहिए।
जस्टिस मिश्रा ने जब सिंघवी ने कहा कि राजनीतिक विरोध को अलग तरह से देखा जाना चाहिए तो पूछा,
"आपका तर्क यह है कि यदि कोई राजनेता ऐसा करता है तो इसकी अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन यदि कोई सामान्य नागरिक ऐसा करता है तो इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए? इसे कैसे रद्द किया जा सकता है? सिर्फ इसलिए कि यह एक राजनेता द्वारा किया गया है?"
जस्टिस मिश्रा ने कहा,
"क्या आपने प्रदर्शन के लिए अनुमति मांगी? आपने नहीं... अच्छी सुबह आप हजारों की संख्या में इकट्ठा हुए और कहा कि हमें कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि हम विरोध कर रहे हैं..."
सिद्धारमैया की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने भी कहा कि यह मामला "कानून और व्यवस्था के आरोप" के बारे में है, न कि "सार्वजनिक व्यवस्था के आरोप" के बारे में।
उन्होंने कहा,
"कानून और व्यवस्था" अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंध का आधार नहीं है, क्योंकि इसमें केवल "सार्वजनिक व्यवस्था" का उल्लेख है।
सिब्बल ने कहा,
"अन्यथा यह बहुत खतरनाक होगा। हर सार्वजनिक विरोध अवैध होगा।"
पीठ के सीनियर जज जस्टिस रॉय ने बाद में आदेश सुनाया, उत्तरदाताओं को छह सप्ताह के भीतर जवाब देने योग्य नोटिस जारी किया और मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी। आदेश में कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी गई, जिसने याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं को खारिज करते हुए प्रत्येक याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
हाईकोर्ट ने सिद्धारमैया को 26 फरवरी, 2024 को विशेष अदालत के सामने पेश होने का निर्देश दिया था और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने में सक्षम बनाने के फैसले पर रोक लगाने की प्रार्थना को खारिज कर दिया।
अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि 14 अप्रैल, 2022 को रणदीप सुरजेवाला (राज्यसभा सांसद), डीके शिवकुमार (डिप्टी सीएम, कर्नाटक) और सिद्धारमैया के नेतृत्व में 35-40 सदस्यों के समूह ने तत्कालीन सीएम के आवास की ओर सार्वजनिक सड़क में प्रवेश किया। नारेबाजी की और केएस ईश्वरप्पा के इस्तीफे की मांग की। उन पर आईपीसी की धारा 143 और कर्नाटक पुलिस अधिनियम, 1963 की धारा 103 के तहत गैरकानूनी सभा के लिए मामला दर्ज किया गया। कथित तौर पर, फ्रीडम पार्क के अलावा बेंगलुरु में मार्च आयोजित करने के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद विरोध प्रदर्शन किया गया।
सिद्धारमैया ने हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण, प्रतिशोधपूर्ण और उत्पीड़न करने के इरादे से की गई, क्योंकि विषय विरोध 14 अप्रैल, 2022 को हुआ था, जबकि हाईकोर्ट का आदेश 1 अगस्त, 2022 का है।
1 अगस्त, 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के तहत कर्नाटक सरकार को कर्नाटक पुलिस अधिनियम के तहत जारी विरोध, प्रदर्शन और विरोध मार्च (बेंगलुरु सिटी) आदेश, 2021 के लाइसेंसिंग और विनियमन का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश केवल बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में जुलूस, धरना और विरोध प्रदर्शन की अनुमति दी गई। यह आदेश शहर में प्रमुख यातायात अवरोध के बाद चीफ जस्टिस को लिखे हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश के पत्र के आधार पर शुरू की गई स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर आया।
गौरतलब है कि 3 मार्च, 2022 को हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित कर कर्नाटक सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि फ्रीडम पार्क को छोड़कर बेंगलुरु में कोई विरोध, जुलूस आदि आयोजित न किया जाए, जिससे शहर में यातायात नियंत्रित रहे।
केस टाइटल: सिद्धारमैया बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 2292/2024