सीनियर एडवोकेट प्रताप वेणुगोपाल को ED समन पर SCAORA ने जताई, आपत्ति CJI से स्वतः संज्ञान लेने की अपील
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) को पत्र लिखकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सीनियर एडवोकेट प्रताप वेणुगोपाल को जारी किए गए समन पर स्वतः संज्ञान (Suo Motu Cognizance) लेने का अनुरोध किया। यह समन एक क्लाइंट को दी गई कानूनी सलाह के सिलसिले में जारी किया गया।
क्या है मामला?
18 जून को ED ने प्रताप वेणुगोपाल को Care Health Insurance को दी गई कानूनी सलाह के संबंध में समन जारी किया। यह सलाह Religare Enterprises की पूर्व अध्यक्ष डॉ. रश्मि सलूजा को ESOP (इंप्लॉयी स्टॉक ओनरशिप) देने के मामले में दी गई थी।
इससे पहले सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार को भी इसी मामले में समन जारी किया गया था। हालांकि बाद में उसे वापस ले लिया गया।
यह कानूनी राय जब दी गई थी तब दातार सीनियर एडवोकेट थे और वेणुगोपाल इस प्रक्रिया में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) के रूप में सहयोग कर रहे थे। जनवरी, 2025 में वेणुगोपाल को सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया। अब ED ने उन्हें 24 जून को पेश होने को कहा है (पहले तारीख 27 जून तय थी)।
SCAORA की आपत्ति और मांग
SCAORA के अध्यक्ष विपिन नायर द्वारा CJI को भेजे गए पत्र में कहा गया कि ED की यह कार्रवाई न केवल कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है बल्कि वकील-और-मुवक्किल के बीच गोपनीयता (Lawyer-Client Privilege) जैसे बुनियादी सिद्धांतों को भी खतरे में डालती है।
पत्र में निम्नलिखित मांगें की गईं
1. इस प्रकार के समनों की कानूनी वैधता और उपयुक्तता की जांच की जाए, जो वकीलों को उनके अच्छे विश्वास में दी गई कानूनी राय के लिए जारी किए जाते हैं।
2. संवैधानिक और व्यावसायिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, जो वकीलों को प्राप्त हैं।
3. वकील-मुवक्किल गोपनीता के संरक्षण और बार की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उचित दिशानिर्देश तय किए जाएं।
SCAORA ने कहा,
"ED द्वारा की गई यह कार्रवाई वकील-मुवक्किल गोपनीयता जैसे पवित्र सिद्धांत का अनुचित अतिक्रमण है, जो वकीलों की स्वतंत्रता और निर्भीक कार्यप्रणाली के लिए गंभीर खतरा है। सीनियर एडवोकेट पर इस तरह के अनुचित और दमनकारी कदम खतरनाक मिसाल पेश करते हैं। इससे पूरे कानूनी समुदाय में भय का माहौल उत्पन्न हो सकता है।"
निष्कर्ष
SCAORA ने यह भी स्पष्ट किया कि वकील की भूमिका कानूनी सलाह देने तक सीमित और संरक्षित होती है। ऐसे में यदि जांच एजेंसियां कानून के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत जाकर हस्तक्षेप करती हैं तो यह कानून के शासन (Rule of Law) पर सीधा प्रहार है और वकीलों को ईमानदारी से राय देने से रोक सकता है।
SCAORA ने CJI से आग्रह किया कि वे इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करें और न्यायपालिका की गरिमा एवं वकालत की स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करें।