न्यायिक आदेश के बावजूद मामला सूचीबद्ध नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (6 मई) को न्यायिक आदेश के बावजूद मामले को हटाने के खिलाफ अपने रजिस्ट्रार (न्यायिक) से स्पष्टीकरण मांगा।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में लिस्टिंग प्रक्रिया की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया।
सूचीबद्ध करने का न्यायिक आदेश होने के बावजूद मामले को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया नहीं अपनाने के लिए अदालत के समक्ष उपस्थित रजिस्ट्रार (न्यायिक) से स्पष्टीकरण मांगा गया।
खंडपीठ ने आदेश पारित करने से पहले कहा,
"हम इस तरह नहीं छोड़ सकते।"
अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को उक्त प्रक्रियात्मक चूक की जांच करने और एक सप्ताह के भीतर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
मामले को स्पष्टीकरण के साथ अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया गया।
यह पहली बार नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक निर्देशों के बावजूद मामलों को सूचीबद्ध करने में रजिस्ट्री की विफलता पर नाराजगी व्यक्त की है।
जस्टिस अभय एस ओक की अगुवाई वाली पीठ ने भी इससे पहले निराशा के साथ कहा था कि सिविल अपील शुक्रवार के बजाय गुरुवार को सूचीबद्ध की जानी चाहिए थी, जब इसे सूचीबद्ध किया गया।
जस्टिस ओक ने मौखिक रूप से कहा,
"चिंता की बात यह है कि स्टाफ के कुछ सदस्यों ने सिविल अपील को सूचीबद्ध करने के निर्देश देने वाले न्यायिक आदेश को नजरअंदाज कर दिया।"
इसके अलावा, जस्टिस (रिटायर्ड) अनिरुद्ध बोस की अगुवाई वाली पीठ ने 23.01.2024 को इसे पोस्ट करने के न्यायिक आदेश के बावजूद अदानी पावर राजस्थान लिमिटेड से संबंधित मामले को सूचीबद्ध नहीं करने के लिए रजिस्ट्री की खिंचाई की थी।
एक अन्य मामले में जस्टिस ओक ने पिछले साल अदालत के आदेशों का अनुपालन न करने के लिए अदालत के मास्टरों पर दोष मढ़ने के लिए रजिस्ट्री की खिंचाई की और इसे 'बहुत खेदजनक स्थिति' कहा।
केस टाइटल: राहुल विनोदकुमार बोराद @ जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 004551/2024