सुप्रीम कोर्ट ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुरक्षित रखा

Update: 2024-02-01 12:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने 8 दिनों तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एससी शर्मा शामिल थे, इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के फैसले से उत्पन्न संदर्भ पर सुनवाई कर रही थी। उक्त फैसले में कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 2009 में इस मुद्दे को 7 जजों की बेंच के पास भेज दिया था। मामले में उठने वाले मुद्दों में से एक यह है कि क्या यूनिवर्सिटी, जो क़ानून (AMU Act, 1920) द्वारा स्थापित और शासित है, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है।

एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ (5-न्यायाधीश पीठ) में सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले की शुद्धता, जिसने AMU की अल्पसंख्यक स्थिति खारिज कर दी और AMU Act में 1981 का संशोधन, जिसने यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिया, संदर्भ में भी आया।

AMU और AMU ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करते हुए सीनियर एडवोकेट डॉ. राजीव धवन और कपिल सिब्बल के साथ-साथ सलमान खुर्शीद, शादान फरासत हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से उपस्थित हुए।

भारत संघ का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया।

नीरज किशन कौल, गुरु कृष्ण कुमार, विनय नवारे, यतिंदर सिंह, विक्रमजीत बनर्जी (एएसजी) और केएम नटराज (एएसजी) सहित कई अन्य सीनियर वकील भी उत्तरदाताओं और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश करते हुए उपस्थित हुए।

8 दिनों तक चली सुनवाई के दौरान विचार-विमर्श के कई प्रमुख पहलुओं को बेंच और बार के सामने रखा गया।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 की व्याख्या से लेकर सूची 1 की प्रविष्टि 63 के साथ इसकी परस्पर क्रिया, AMU का विधायी इतिहास और 1951 से 1981 तक मूल 1920 AMU Act में किए गए विभिन्न संशोधन अधिनियमों का विश्लेषण किया गया।

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