सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में ऑटो रिक्शा की अधिकतम सीमा बढ़ाने की मांग वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने बजाज ऑटो की याचिका खारिज की, जिसमें दिल्ली में ऑटो रिक्शा की अधिकतम सीमा बढ़ाने की मांग की गई थी।
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि यह सीमा पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लगाई गई और अगर कोर्ट अपने कारोबार को बढ़ाने में रुचि रखने वाले ऑटो निर्माता की याचिका पर विचार करता है तो इससे गलत संकेत जाएगा।
कोर्ट ने कहा,
"ऑटो रिक्शा निर्माता के कहने पर इस आवेदन पर विचार नहीं किया जा सकता। अगर यह कोर्ट पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लगाए गए मानदंडों में ढील देने के लिए वाहन निर्माताओं के आवेदन पर विचार करना शुरू करता है तो इससे गलत संकेत जाएगा।"
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार या दिल्ली के आम आदमी के हितों के लिए काम करने वाला कोई प्राधिकरण या संगठन कोर्ट में आता है तो वह सीमा बढ़ाने की याचिका पर विचार करेगा।
कोर्ट ने कहा,
"आवेदन दिल्ली सरकार या आम आदमी के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी व्यक्ति की ओर से आना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ के मामले में दिल्ली सरकार को दिल्ली में ऑटो रिक्शा परमिट की संख्या स्थिर करने का निर्देश दिया। 2011 में इस सीमा को बढ़ाकर 1 लाख ऑटो कर दिया गया। उसके बाद से इसमें कोई संशोधन नहीं किया गया।
बजाज की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि यह रोक दो स्ट्रोक इंजन वाले दो सीट वाले ऑटो के लिए थी, जो पुरानी तकनीक है। हालांकि, वर्तमान में सभी ऑटो सीएनजी आधारित हो गए हैं, जो स्वच्छ तकनीक है।
एमिक्स क्यूरी अपराजिता सिंह ने कहा कि हालांकि वह याचिका का विरोध नहीं कर रही हैं, लेकिन इस संबंध में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) की नवीनतम रिपोर्ट पांच साल पुरानी है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले को नई रिपोर्ट के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को भेजा जाना चाहिए।
2019 में EPCA ने यह कहते हुए सीमा हटाने की सिफारिश की थी कि पहले और आखिरी मील की कनेक्टिविटी सहित पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी के कारण वाहनों के निजी स्वामित्व में वृद्धि हुई है, जिससे प्रदूषण और भीड़भाड़ बढ़ रही है।
हालांकि, पीठ ने व्यावसायिक हितों वाली एक उद्योग इकाई के इशारे पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस ओक ने कहा,
"प्राधिकरणों की ओर से आवेदन आना चाहिए। अगर अधिकारियों को लगता है कि दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन अपर्याप्त है तो हम देखेंगे। राज्य सरकार को शहर में यात्रियों के हितों को ध्यान में रखते हुए आवेदन पेश करने दें।"
केस टाइटल- एमसी मेहता बनाम भारत संघ में अंतरिम आवेदन