सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम के DLF सिटी में विध्वंस पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

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Update: 2025-04-04 13:38 GMT
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम के DLF सिटी में विध्वंस पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

गुरुग्राम के DLF City (फेज 1-5) के निवासियों को राहत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने आज आदेश दिया कि अवैध निर्माण (4000 से अधिक) के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए, जिन पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में अधिकारियों को "त्वरित कार्रवाई" (2 महीने के भीतर) करने का निर्देश दिया था।

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने प्रभावित निवासियों द्वारा दायर याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया। ये निवासी हाईकोर्ट में चल रही कार्यवाही का हिस्सा नहीं थे और अपनी बात रखे बिना ही संपत्ति गंवाने के खतरे में थे।

आदेश में कहा, "इस बीच, अगली सुनवाई की तारीख तक, आज की स्थिति को बनाए रखा जाए। आज दिए गए यथास्थिति के आदेश को ध्यान में रखते हुए, हम स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता भी कोई नया निर्माण नहीं करेंगे," 

रिपोर्ट के अनुसार, इन निवासियों (लगभग 2100 इकाइयों के मालिक/अधिवासी) पर सीलिंग और विध्वंस की कार्रवाई का तत्काल खतरा था, जो आज से शुरू होने वाली थी। सुप्रीम कोर्ट के इस अंतरिम आदेश से जबरन कार्रवाई पर अगले निर्देश तक रोक लग गई।

संक्षेप में, 13 फरवरी को हाईकोर्ट ने हरियाणा प्रशासन को एक रिट ऑफ मेंडमस जारी कर अवैध निर्माणों के खिलाफ 2 महीने के भीतर त्वरित कार्रवाई करने का आदेश दिया था। यह आदेश डीएलएफ सिटी रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और DLF-3 वॉयस द्वारा 2021 में दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिनमें 2018 की एक्शन टेकन रिपोर्ट (अवैध निर्माणों के खिलाफ शिकायतों पर) और जिला नगर योजनाकार (प्रवर्तन) द्वारा जारी मेमो का पालन करने की मांग की गई थी। इस मेमो में सिफारिश की गई थी कि अवैध निर्माण करने वाले मालिकों के ऑक्युपेशन सर्टिफिकेट रद्द किए जाएं और उनकी बिजली, पानी व सीवरेज कनेक्शन काट दिए जाएं।

हाईकोर्ट ने पाया कि ये अवैध निर्माण ज़ोनिंग प्लान, बिल्डिंग बाय-लॉज 2016, बिल्डिंग बाय-लॉज 2017 और हरियाणा बिल्डिंग कोड का स्पष्ट उल्लंघन हैं। यदि अनियोजित और अव्यवस्थित विकास को नहीं रोका गया, तो इसका असर गुरुग्राम के पूरे बुनियादी ढांचे पर पड़ेगा, जिसमें पेयजल, सीवरेज, वायु गुणवत्ता, परिवहन, बिजली और अन्य सार्वजनिक सुविधाएं शामिल हैं।

अपने आदेश में हाईकोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से “लैंड माफिया” बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा, "यह स्पष्ट है कि कुछ शक्तिशाली समूहों/लैंड माफिया की लॉबी, स्थानीय प्रशासन और अधिकारियों की मिलीभगत से इस विकसित कॉलोनी की मूल संरचना को बर्बाद कर रही है। प्रशासन ने जानबूझकर इस ओर आंखें मूंद ली हैं और इन अवैध निर्माणों को तेजी से बढ़ने की अनुमति दी है।"

इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं।

याचिकाकर्ताओं ने निम्नलिखित दलीलें दीं:

1. हाईकोर्ट ने उनका पक्ष सुने बिना आदेश पारित कर दिया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।

2. ट्रायल कोर्ट में दायर दीवानी मुकदमों, जिनमें कुछ मालिकों के पक्ष में स्थगन आदेश पारित किए गए थे, को हाईकोर्ट ने बिना विचार किए खारिज कर दिया।

3. हाईकोर्ट को सभी संपत्तियों पर एकसमान कार्रवाई के बजाय, कम्पाउंडेबल (नियमों के तहत वैध किए जा सकने वाले) और नॉन-कम्पाउंडेबल उल्लंघनों में अंतर करना चाहिए था, जैसा कि Demolitions of Structures केस में दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

4. यह संभावना भी जांची जानी चाहिए थी कि क्या यह मुकदमा डेवलपर डीएलएफ लिमिटेड के इशारे पर प्रॉक्सी लिटिगेशन था, ताकि डीएलएफ फेज-V से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के निवासियों को हटाया जा सके।

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