सिर्फ आपत्तिजनक सबूत न मिलने से आरोपी का असहयोग साबित नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए यह स्पष्ट किया कि जांच के दौरान आपत्तिजनक सामग्री की बरामदगी न होना, आरोपी के असहयोग का संकेत नहीं माना जा सकता।
जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने कहा,
"सिर्फ इसलिए कि कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली, इसका यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया।"
मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत से इनकार किए जाने के खिलाफ दायर अपील से संबंधित था। अपीलकर्ता पर आरोप एक सहआरोपी के बयान के आधार पर लगाए गए, जिससे कुछ बरामदगी की गई थी। इससे पहले भी अपीलकर्ता को इसी तरह के आरोपों में अग्रिम जमानत मिल चुकी थी।
जून में सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर नोटिस जारी करते हुए गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी थी। शर्त यह थी कि वह जांच में शामिल होगा।
राज्य सरकार ने बाद में आरोप लगाया कि आरोपी ने अपना मोबाइल फोन नदी में फेंकने की बात कहकर सहयोग नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त को आदेश पारित करते हुए कहा,
"यह मामला नहीं है कि अपीलकर्ता ने जांच में हिस्सा नहीं लिया। न ही यह दिखाया गया कि उसके मोबाइल नंबर का पता लगाने या कॉल डिटेल रिकॉर्ड इकट्ठा करने का कोई प्रयास किया गया। ऐसे हालात में और पूर्व में भी इसी तरह सुरक्षा मिलने को देखते हुए हम अंतरिम आदेश को स्थायी करते हैं।"
कोर्ट ने यह राहत इस शर्त पर दी कि आरोपी जांच में पूरा सहयोग करेगा गवाहों को धमकाएगा नहीं और सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा।
केस टाइटल: जुगराज सिंह बनाम पंजाब राज्य, आपराधिक अपील संख्या 3640/2025