सुप्रीम कोर्ट ने AMU कुलपति के रूप में प्रोफ़ेसर नईमा खातून की नियुक्ति बरकरार रखी

Update: 2025-09-08 11:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आज (8 सितंबर) अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की पहली महिला कुलपति के रूप में प्रोफ़ेसर नईमा खातून की नियुक्ति में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।

जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ प्रोफ़ेसर मुज़फ़्फ़र उरुज रब्बानी और प्रोफ़ेसर फैज़ान मुस्तफ़ा द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें प्रोफ़ेसर खातून की नियुक्ति को बरकरार रखा गया।

इससे पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने प्रोफ़ेसर खातून के पति तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति प्रोफ़ेसर मोहम्मद गुलरेज़ की कार्यकारी परिषद की बैठक में उपस्थिति पर मौखिक रूप से सवाल उठाया था, जिसमें पैनल के लिए उनका नाम चुना गया था। 

बाद में जस्टिस विनोद चंद्रन द्वारा सुनवाई से खुद को अलग करने के बाद यह मामला वर्तमान पीठ को सौंप दिया गया। 

उन्होंने यह कहते हुए सुनवाई से खुद को अलग कर लिया कि उन्होंने (पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में) प्रो. मुस्तफा को CNLU का कुलपति नियुक्त किया था।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्र को जस्टिस चंद्रन द्वारा मामले की सुनवाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है। फिर भी  जज ने खुद को अलग करने का फैसला किया और कहा कि क्योंकि मामला चयन में कथित पक्षपात से संबंधित है, इसलिए यह उचित है कि वह भी एक याचिकाकर्ता के साथ अपने पेशेवर संबंधों के कारण सुनवाई से अलग हो जाएं।

चुनौती का मुख्य आधार यह था कि प्रोफेसर खातून की नियुक्ति को गलत ठहराया गया, क्योंकि उनके पति ने कार्यकारी परिषद और यूनिवर्सिटी न्यायालय की बैठक की अध्यक्षता की थी, जिसमें उनका नाम कुलाध्यक्ष को भेजे जाने वाले पैनल में शामिल था।

केस टाइटल: मुजफ्फर उरुज रब्बानी बनाम भारत संघ

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