जमानत नियम है, जेल अपवाद, यहां तक कि UAPA जैसे विशेष कानूनों में भी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत नियम है, जेल अपवाद' यहां तक कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 (UAPA Act) जैसे विशेष कानूनों में भी।
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को कथित तौर पर PFI प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने के लिए अपनी संपत्ति किराए पर देने के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी।
कोर्ट ने कहा,
“जब जमानत देने का मामला हो तो अदालत को जमानत देने में संकोच नहीं करना चाहिए। अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन न्यायालय का कर्तव्य है कि वह कानून के अनुसार जमानत के मामले पर विचार करे। अब हमने कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, यह विशेष क़ानूनों पर भी लागू होता है।
जस्टिस ओक ने फैसला सुनाते हुए कहा,
"अगर अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करना शुरू कर देती हैं तो यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा।"
अदालत ने जलालुद्दीन खान को जमानत दी, जिन्होंने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसमें उन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था।
अपीलकर्ता जलालुद्दीन खान कथित तौर पर प्रधानमंत्री की बिहार यात्रा को बाधित करने की योजना और प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़ी अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल थे। उन पर आईपीसी की धारा 120, 120बी, 121,121ए, 153ए, 153बी और 34 और UAPA के तहत अपराध दर्ज किए गए।
खान द्वारा किराए पर लिए गए परिसर में पुलिस की छापेमारी के दौरान कथित तौर पर गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित दस्तावेज़ पाए गए। उन्होंने कथित तौर पर 6 और 7 जुलाई, 2022 को PFI प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने के उद्देश्य से अपने घर की पहली मंजिल एक सह-आरोपी को किराए पर दी थी।
जलालुद्दीन ने शुरू में इन गतिविधियों के बारे में जानकारी से इनकार किया, लेकिन बाद में परिसर को किराए पर देने की बात स्वीकार की। कथित तौर पर प्रशिक्षण में बिहार के बाहर के व्यक्तियों ने भाग लिया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, ये प्रशिक्षण सत्र भारत में मुसलमानों के खिलाफ कथित अत्याचारों के प्रतिशोध में हिंसक कार्रवाई करने के इरादे से SIMI (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया) और PFI के पूर्व सदस्यों को नए समूह में फिर से संगठित करने की व्यापक योजना का हिस्सा थे।
अपीलकर्ता ने दावा किया कि वह PFI या किसी प्रतिबंधित संगठन से संबद्ध नहीं है। उसकी भागीदारी संपत्ति किराए पर देने तक ही सीमित थी।
स्पेशल NIA कोर्ट ने पहले उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
पुलिस के दस्तावेजों आरोप पत्र और संरक्षित गवाहों के बयानों की समीक्षा करने के बाद HC ने अपीलकर्ता और उसके सह-आरोपी अतहर परवेज को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA Act) की धारा 43D का हवाला देते हुए जमानत देने से इनकार करने के विशेष न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
न्यायालय ने आरोपों की गंभीरता, अपराध के दोहराए जाने के जोखिम और साक्ष्यों से छेड़छाड़ की संभावना को जमानत देने से इनकार करने के कारणों के रूप में उद्धृत किया।
इस प्रकार अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया कि PFI जैसे प्रतिबंधित संगठनों के सदस्यों को कानूनी सहायता प्रदान करना UAPA के तहत आतंकवादी कृत्यों की किसी भी निषिद्ध श्रेणी में नहीं आता है, जबकि सह-आरोपी एडवोकेट नूरुद्दीन जंगी को IPC की धारा 120, 120B, 121, 121A, 153A, 153B और 34 के तहत जमानत दी गई।
केस टाइटल - जलालुद्दीन खान बनाम भारत संघ