अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट मध्यस्थता कार्यवाही में अपवाद स्वरूप दे सकता है, अंतरिम राहत: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-05-08 05:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई को यह फैसला सुनाया कि भले ही मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C Act) न्यायिक हस्तक्षेप को न्यूनतम रखने का सिद्धांत अपनाता है, फिर भी हाईकोर्ट अपवाद स्वरूप संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपनी न्यायिक निगरानी शक्ति का प्रयोग कर सकता है, विशेषकर तब जब ऐसी राहत न देने से अपूरणीय क्षति हो सकती है।

न्यायालय ने कहा,

“हम इस विधिक सिद्धांत से भलीभांति अवगत हैं कि न्यायालयों को बैंक गारंटी के उपयोग में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, सिवाय उन मामलों के जहां गंभीर धोखाधड़ी हो या बैंक गारंटी का भुनाया जाना अपूरणीय अन्याय का कारण बनता हो।”

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने उत्तरदाता-रियल एस्टेट कंपनी द्वारा बनवाए जा रहे आवासीय इकाइयों के लिए अपीलकर्ता द्वारा दी गई बैंक गारंटी को नकद कराने से अंतरिम सुरक्षा देने के हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

खंडपीठ ने माना कि चूंकि बैंक गारंटी का नकदीकरण अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता था। इसलिए हाईकोर्ट का Section 9 के तहत दी गई राहत में हस्तक्षेप उचित था।

मामले की पृष्ठभूमि:

3.73 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि अपीलकर्ता (जिंदल स्टील एंड पावर) द्वारा दी गई, जो बिना शर्त बैंक गारंटी से सुरक्षित थी। बाद में अपीलकर्ता ने देरी और खराब कार्य निष्पादन का हवाला देते हुए अनुबंध को समाप्त कर दिया और बैंक गारंटी को नकद कराने की कोशिश की। इसके विरुद्ध, उत्तरदाता ने Section 9 के तहत बैंक गारंटी के नकदकरण पर अंतरिम रोक की मांग करते हुए याचिका दायर की, जो खारिज हो गई।

इसके बाद उत्तरदाता ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर बैंक गारंटी पर रोक की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया। इससे असंतुष्ट होकर अपीलकर्ता जिंदल सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

मुख्य कानूनी प्रश्न:

क्या हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 227 के तहत अंतरिम राहत देकर अपनी शक्तियों का अनुचित प्रयोग किया, जबकि Section 37(1)(b) के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध था?

सुप्रीम कोर्ट का उत्तर: हां- लेकिन परिस्थितियां असाधारण थीं।

जस्टिस महादेवन द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि हालांकि सामान्यतः मध्यस्थता मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप से बचना चाहिए लेकिन इस मामले में बैंक गारंटी की निरंतरता और मध्यस्थता की प्रगति को देखते हुए हाईकोर्ट का अंतरिम संरक्षण देना उचित था।

अदालत ने कहा,

"हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश केवल एक अस्थायी उपाय है, जिसका उद्देश्य दोनों पक्षों के हितों की रक्षा करना है।"

बैंक गारंटी से संबंधित चल रही मध्यस्थता कार्यवाही के मद्देनज़र, Section 9 याचिका के अंतिम निर्णय तक यथास्थिति बनाए रखना आवश्यक है।

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अपील का निपटारा करते हुए निर्देश दिया,

“दोनों पक्ष अपने सभी तर्क और आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करें। कमर्शियल आठ सप्ताह के भीतर उचित आदेश पारित करे। तब तक बैंक गारंटी वैध बनी रहेगी और Section 9 याचिका के निर्णय के अधीन रहेगी।

केस टाइटल: M/S जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड और अन्य बनाम M/S बंसल इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य

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