सीनियर एडवोकेट के खिलाफ एफआईआर में आरोप कि उन्होंने जजों को प्रभावित करने के लिए मुवक्किल से 7 करोड़ रुपये लिए; सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करने की याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2024-12-05 06:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 दिसंबर) को सीनियर एडवोकेट वेदुला वेंकटरमण की ओर से दायर एक एसएलपी में नोटिस जारी किया, जिसमें एक मामले में अनुकूल परिणाम के लिए हाईकोर्ट के जजों को प्रभावित करने के लिए एक मुवक्किल से कथित तौर पर 7 करोड़ रुपये लेने के आरोप में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।

जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एसएलपी में नोटिस जारी किया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 24 जनवरी, 2025 को सूचीबद्ध किया।

तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा था, "याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर हैं। इस न्यायालय के न्यायाधीशों को रिश्वत देने के लिए धन प्राप्त करने का आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर संदेह पैदा करता है और इसका तात्पर्य है कि न्याय बिकाऊ है। ऐसे गंभीर आरोपों की जांच की जानी चाहिए।"

हैदराबाद स्‍थ‌ित सेंट्रल क्राइम स्टेशन की ओर से दर्ज एफआईआर में उन पर आईपीसी की धारा 406, 420, 504 और 506 तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(वीए) और 3(1)(आर) के तहत धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी और जाति-आधारित गाली-गलौज का आरोप लगाया गया है।

एफआईआर का आधार बनी शिकायत में आरोप लगाया गया है कि 2005 में अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य वेंकटरमण को शिकायतकर्ता और अन्य लोगों ने भूमि विवाद के सिलसिले में कानूनी सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था। शिकायतकर्ता और अन्य ने याचिकाकर्ता को केस के दस्तावेज सौंपे और आरोप लगाया कि उन्होंने कानूनी फीस के तौर पर 30 लाख रुपये मांगे, जिसका उन्होंने भुगतान कर दिया। इसके बाद, वेंकटरमण ने कथित तौर पर उन्हें एक मजबूत केस और अनुकूल परिणाम का आश्वासन दिया।

शिकायतकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि शुरुआती फीस प्राप्त करने के बाद, याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त 7 करोड़ रुपये नकद मांगे, यह दावा करते हुए कि अनुकूल निर्णय प्राप्त करने के लिए हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को रिश्वत देना आवश्यक था। कथित तौर पर यह पैसा किश्तों में दिया गया।

हालांकि, बाद में पता चला कि वेंकटरमण ने कथित तौर पर विरोधी पक्ष के साथ मिलीभगत की थी, और उनसे 25 करोड़ रुपये प्राप्त किए थे। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के कार्यालय में बार-बार जाने और पैसे वापस मांगने के बावजूद, उन्होंने न तो पूरी राशि वापस की और न ही मामले का उचित तरीके से प्रतिनिधित्व किया। वेदुला पर जाति-आधारित गाली-गलौज करने और जान से मारने की धमकी देने का भी आरोप है, जब शिकायतकर्ता ने 6 करोड़ रुपये वापस मांगे, जो कि भुगतान नहीं किए गए थे।

वेंकटरमण ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत तेलंगाना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें इस आधार पर एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई कि यह अस्पष्ट और निराधार आरोपों पर आधारित है।

उन्होंने तर्क दिया कि मामला एक सिविल प्रकृति का था और शिकायतकर्ता द्वारा किए गए भुगतानों के दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों का अभाव था।

उन्होंने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (एआईआर 2014 एससी 187) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया कि एफआईआर दर्ज करने से पहले कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई थी, जैसा कि कानून के तहत आवश्यक है। तेलंगाना हाईकोर्ट ने यह देखते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि आरोपों की जांच की जानी चाहिए और इस स्तर पर उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता। इसलिए, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी एसएलपी में, वेंकटरमण ने तर्क दिया है कि एफआईआर में प्रथम दृष्टया तथ्य की कमी थी और इसमें बिना सबूत के केवल आरोप थे, और एफआईआर दर्ज होने के बाद से कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था।

केस नंबरः एसएलपी (सीआरएल.) डीवाई नंबर 49000/2024

केस टाइटलः वेदुला वेंकटरमन बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य


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