सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल हाईवे एक्ट की धारा 3जी की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने नेशनल हाईवे एक्ट, 1956 (National Highways Act) की धारा 3जी की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाल रिट याचिका पर नोटिस जारी किया।
रिट याचिका एक्ट की धारा 3जी(5) की वैधता पर सवाल उठाती है। यह धारा भूमि अधिग्रहण होने पर भूमि मालिकों को देय मुआवजे की राशि पर विवादों को हल करने के लिए आर्बिट्रेशन को अनिवार्य बनाती है। आर्बिट्रेशन का संचालन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा किया जाना है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि एक्ट की धारा 3जी(5) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है। तर्क यह है कि केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से चुने गए मध्यस्थ के साथ अनिवार्य मध्यस्थता लागू करना, भूमि मालिकों के खिलाफ प्रक्रिया को गलत तरीके से पूर्वाग्रहित करता है।
इसने आगे तर्क दिया कि एक्ट की धारा 3जी के संदर्भ में मध्यस्थ की नियुक्ति पर्किन्स ईस्टमैन बनाम एचएससीसी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोधाभासी है, क्योंकि विवाद में एकतरफा मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया। इसने तर्क दिया कि इच्छुक पक्षकार होने के नाते केंद्र सरकार को एकतरफा मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार नहीं हो सकता। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि ऐसा व्यक्ति ए एंड सी एक्ट की 5वीं और 7वीं अनुसूची के साथ धारा 12(5) के संदर्भ में मध्यस्थ के रूप में नियुक्त होने के लिए अयोग्य होगा।
रिट याचिका में उल्लेख किया गया कि अभ्यास के मामले के रूप में यह सरकार का सेवक, उपायुक्त/मजिस्ट्रेट है, जिसे एक्ट के तहत मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया जाता है। याचिका में मध्यस्थ की नियुक्ति और उसके परिणामस्वरूप होने वाली मध्यस्थ कार्यवाही में देरी पर भी प्रकाश डाला गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि मध्यस्थ केंद्र सरकार का नौकर है, इसलिए इससे भूस्वामियों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उसमें दिया जाने वाला मुआवजा अपर्याप्त रहता है और मध्यस्थ केवल सरकार द्वारा पहले से निर्धारित मुआवजे के लिए रबर स्टांप के रूप में कार्य करता है। यह NHAI बनाम एम.हकीम[2] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है, जिसमें उक्त कमियां नोट की गईं। हालांकि, चूंकि उस मामले में विवाद एक्ट की धारा 3जे तक सीमित है, इसलिए कोर्ट ने एक्ट की धारा 3(जी)(5) से उत्पन्न होने वाली चिंताओं का समाधान नहीं किया।
याचिका में एक्ट की धारा 3जी(5) को इस आधार पर चुनौती दी गई कि यह गैर-सहमति वाली आर्बिट्रेशन लागू करती है, जो NHAI/केंद्र सरकार के पक्ष में है। इसके अतिरिक्त, याचिका इस प्रक्रिया में ए एंड सी एक्ट की धारा 11 को बाहर करने की आलोचना करती है।
केस टाइटल: बी.डी. विवेक बनाम भारत संघ, रिट याचिका सिविल नंबर 1364/2023
दिनांक: 12.12.2023
याचिकाकर्ता के वकील: मधुस्मिता बोरा, एओआर, पवन किशोर सिंह और पवित्रा वी।
प्रतिवादी के वकील: कोई नहीं
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