सुप्रीम कोर्ट ने BJP नेता के अन्नामलाई के खिलाफ ट्रायल पर लगी रोक बढ़ाई

Update: 2024-04-29 09:24 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई मिशनरी गैर-लाभकारी संस्था (NGO) के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर तमिलनाडु भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता के अन्नामलाई के खिलाफ मुकदमे पर रोक सितंबर तक बढ़ा दी।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ 8 फरवरी के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अन्नामलाई की विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें नफरत फैलाने वाले भाषण मामले में निचली अदालत की कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

26 फरवरी को अन्नामलाई की याचिका पर शिकायतकर्ता (वी पीयूष) को नोटिस जारी किया गया, जब अदालत ने मुकदमे की कार्यवाही पर रोक की अस्थायी राहत भी दी थी।

प्रतिवादी-शिकायतकर्ता के वकील के अनुरोध के मद्देनजर, मामले को 9 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

जस्टिस खन्ना ने कहा,

उस समय तक अंतरिम आदेश जारी रहेगा।

मामले की पृष्ठभूमि

यूट्यूब इंटरव्यू में अन्नामलाई ने कथित तौर पर कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की मांग के लिए ईसाई मिशनरी गैर-सरकारी संगठन (NGO) जिम्मेदार है। उनके उक्त बयान ने बहुत ध्यान और विवाद आकर्षित किया। सोशल मीडिया पर इंटरव्यू की वीडियो क्लिपिंग के प्रसार के बाद पर्यावरणविद् वी पीयूष द्वारा शिकायत दर्ज की गई, जिसमें चिंता व्यक्त की गई कि टिप्पणियों से समुदायों के बीच नफरत भड़क सकती है।

शुरुआत में अधिकारियों द्वारा ठुकराए जाने के बाद पीयूष ने सलेम में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156(3) और 200 लागू की। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आईपीसी की धारा 153ए और 505(1)(बी) के तहत प्रथम दृष्टया मामला पाए जाने पर अन्नामलाई को समन जारी किया।

समन और पूरी कार्यवाही को चुनौती देते हुए अन्नामलाई ने तर्क दिया कि उनके भाषण पीड़ा की अभिव्यक्ति हैं और उनका उद्देश्य सांप्रदायिक कलह को बढ़ावा देना नहीं था। उन्होंने शिकायत के समय पर प्रकाश डाला, इंटरव्यू के लगभग 400 दिन बाद दायर किया गया। इस दौरान उनके भाषण के आधार पर कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।

मद्रास हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए अन्नामलाई के बयानों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर जोर दिया, जिन्हें सांप्रदायिक रंग माना गया। अदालत ने प्रमुख नेता के रूप में उनकी स्थिति के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उनके शब्दों में वजन होता है और लक्षित समूह पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है। यह भी नोट किया गया कि उनके बयानों में विशेष धर्म के प्रति नफरत पैदा करने का इरादा स्पष्ट था, जिससे प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ निष्कर्ष निकाला गया।

केस टाइटल: के अन्नामलाई बनाम वी पीयूष | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 2323/2024

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