सुप्रीम कोर्ट ने AGR बकाया पर फैसले के खिलाफ दूरसंचार कंपनियों की क्यूरेटिव याचिकाएं खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने समायोजित सकल राजस्व (AGR) बकाया के भुगतान के संबंध में न्यायालय के 2019 के फैसले के खिलाफ दूरसंचार कंपनियों (वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज सहित) द्वारा दायर क्यूरेटिव याचिकाएं खारिज की।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा में न्यायालय के फैसले के संदर्भ में क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने का कोई आधार नहीं बनता है।
संक्षेप में मामला
दूरसंचार कंपनियों को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2019 में केंद्र की याचिका स्वीकार की, जिसमें उनसे लगभग 92,000 करोड़ रुपये का समायोजित सकल राजस्व (AGR) वसूलने की मांग की गई।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा तैयार AGR की परिभाषा बरकरार रखी।
दूरसंचार कंपनियों ने इस निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की, लेकिन जनवरी, 2020 में उन्हें खारिज कर दिया गया।
1 सितंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया, जिसमें दूरसंचार कंपनियों को 10 साल की अवधि में अपने AGR बकाया का भुगतान करने की आवश्यकता थी। यह स्पष्ट किया गया कि AGR बकाया का कोई पुनर्मूल्यांकन नहीं होगा। किसी भी चूक के लिए ब्याज, जुर्माना और अदालत की अवमानना के आरोप लगाए जाएंगे।
एक साल बाद न्यायालय ने AGR बकाया मांग में सुधार की मांग करने वाली याचिका खारिज की, जिसमें दूरसंचार कंपनियों ने दावा किया कि गणना में कई त्रुटियां थीं (जो कि 1 ट्रिलियन रुपये से अधिक है)।
2023 में वोडाफोन सहित दूरसंचार कंपनियों ने न्यायालय के जनवरी 2020 के निर्णय (समीक्षा याचिकाओं को खारिज करने) के खिलाफ उपचारात्मक याचिकाएं दायर कीं।
उनके मामले के अनुसार, दूरसंचार विभाग (DoT) ने अंतिम मांग की गणना करने में गंभीर त्रुटियां की थीं। उदाहरण के लिए, विभाग ने वोडाफोन के मामले में 58,254 करोड़ रुपये की मांग की, जबकि कंपनी का अपना मूल्यांकन 21,533 करोड़ रुपये का था।
इस साल जुलाई में क्यूरेटिव याचिकाओं की तत्काल लिस्टिंग की मांग की गई, जब सीजेआई चंद्रचूड़ ने आश्वासन दिया कि लिस्टिंग पर फैसला जल्द ही लिया जाएगा। वोडाफोन की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने कहा कि कंपनी अपने बकाए का भुगतान करने के लिए ऋण निधि जुटाने की कोशिश कर रही है, लेकिन संभावित ऋणदाताओं को कंपनी की सटीक देनदारी पर स्पष्टता की आवश्यकता है।
इसके बाद न्यायालय के तीन सीनियर जजों ने क्यूरेटिव याचिकाओं पर विचार किया और 30 अगस्त को उन्हें खारिज कर दिया।
केस टाइटल: वोडाफोन आइडिया लिमिटेड बनाम भारत संघ, क्यूरेटिव याचिका (सिविल) नंबर 231-337/2023 (और संबंधित मामले)