सुप्रीम कोर्ट ने विष्णुपद मंदिर को 'सार्वजनिक ट्रस्ट' घोषित करने के पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका खारिज की

Update: 2024-08-08 05:16 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गया में हिंदुओं के श्राद्ध कर्म का केंद्र विष्णुपद मंदिर धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है, न कि गयावाल ब्राह्मणों (मंदिर के पारंपरिक पुजारी) की निजी संपत्ति।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की दलील सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने मामले में 15 गवाहों (दस्तावेजी और मौखिक) की जांच की, लेकिन अपीलीय अदालत ने सबूतों को खारिज कर दिया।

जस्टिस खन्ना ने जवाब में कहा,

"ठीक ही हुआ, पहला अदालती आदेश अमान्य हो गया। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर रहे। यह सार्वजनिक ट्रस्ट है।"

​​वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता से जुड़े अन्य मामले में पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि विष्णुपद मंदिर को सरकारी ट्रस्ट द्वारा नियंत्रित किया जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी, खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में उसके आदेश का पहले के मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

आदेश इस प्रकार लिखा गया:

"हम आरोपित निर्णय में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। इसलिए विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है। हालांकि हम स्पष्ट करते हैं कि विशेष अनुमति याचिका के खारिज होने से विशेष अनुमति अपील (सी) नंबर 3644/2021 विष्णुपद मंदिर की प्रबंध समिति और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा।"

गयावाल पंडों के समूह द्वारा विष्णुपद भगवान के नाम से दायर याचिका में हाईकोर्ट द्वारा जनवरी, 2024 में दिए गए निर्णय को चुनौती दी गई, जिसके तहत उनकी दूसरी अपील खारिज कर दी गई।

कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यदि आम जनता किसी मंदिर में या किसी देवता पर पूजा करने के अपने अधिकार का प्रयोग अधिकार के रूप में करती है और वे लाभार्थी हैं तो यह सार्वजनिक ट्रस्ट होगा। चूंकि विष्णुपद मंदिर के लाभार्थी आम जनता है, इसलिए यह माना गया कि यह धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है।

हाईकोर्ट ने कहा,

"उपर्युक्त तथ्यों और परिस्थितियों, विशेष रूप से मंदिर की उत्पत्ति, पूजा के संबंध में भक्तों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले अधिकार, जनता द्वारा दिए गए दान/योगदान की प्रकृति और सीमा तथा उपरोक्त निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि विष्णुपद मंदिर धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है और गयावाल ब्राह्मणों की निजी संपत्ति नहीं है।"

संक्षेप में मामला

1977 में गयावाल पंडों और विष्णुपद भगवान (नेक्स्ट फ्रेंड के माध्यम से) द्वारा स्थानीय गया न्यायालय में सिविल मुकदमा दायर किया गया, जिसमें यह घोषित करने की मांग की गई कि मंदिर निजी ट्रस्ट है, गयावाल पुजारियों का इसके प्रबंधन पर पूर्ण नियंत्रण है। यह बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के प्रावधानों द्वारा शासित होने वाला सार्वजनिक मंदिर नहीं है। यह भी प्रार्थना की गई कि प्रतिवादियों (BSBRT सहित) को वादी के अधिकार और कब्जे में हस्तक्षेप करने से स्थायी रूप से रोका जाए।

1993 में वादी पुजारियों के पक्ष में मुकदमा सुनाया गया, जिसके खिलाफ BSBRT ने जिला न्यायाधीश, गया की अदालत में अपील (प्रथम) की। उक्त शीर्षक अपील को अनुमति दी गई और जून 1993 के एकपक्षीय फैसले को इस दृष्टिकोण से (दिसंबर 2020 में) अलग रखा गया कि मंदिर सार्वजनिक ट्रस्ट है और BSBRT की सामान्य अधीक्षण शक्तियों के अधीन है।

इसके बाद वादी-पुजारियों द्वारा दिसंबर 2020 के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अपील दायर की गई। मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया कि शास्त्र के अनुसार (जैसा कि पवित्र अग्नि पुराण और वायु पुराण में पाया जाता है) गया तीर्थ श्री भगवान ब्रह्मा द्वारा उन्हें (गयावाल ब्राह्मणों) को सौंप दिया गया और उन्हें आदेश दिया गया कि वे इस तीर्थ से अपनी आजीविका प्राप्त करेंगे।

इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि भगवान विष्णु के पवित्र पदचिह्न को बाद में मंदिर द्वारा घेर दिया गया, जिसे रानी अहिल्या बाई के कहने पर पुराने मंदिर के स्थान पर पत्थरों से बनाया गया, जिसे गयावाल ब्राह्मणों द्वारा बनाया गया।

दूसरी ओर, BSBRT का मामला यह था कि रानी अहिल्या बाई द्वारा मंदिर का निर्माण गयावाल ब्राह्मणों के लिए नहीं था, बल्कि भक्तों में से एक के रूप में उनके अपने अधिकार और सामान्य हिंदू के लिए था, जिसने निर्णायक रूप से साबित कर दिया कि विष्णुपद मंदिर सार्वजनिक संपत्ति है और गयावाल ब्राह्मणों की विशेष संपत्ति नहीं है।

यह दृढ़तापूर्वक तर्क दिया गया कि विष्णुपद मंदिर और संबद्ध वेदियां एक-दूसरे का अभिन्न अंग हैं। प्रत्येक हिंदू को मंदिर में जाने का जन्मसिद्ध अधिकार है और यह गयावाल की कृपा पर निर्भर नहीं है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

न्यायालय ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि हिंदू वायु पुराण, अग्नि पुराण, गया महात्म्य, वेदों और धार्मिक अनुष्ठानों (जैसे गया क्षेत्र में श्राद्ध करना) में विश्वास करते हैं।

इसने इस निर्विवाद स्थिति पर भी ध्यान दिया कि वायु पुराण और अग्नि पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने गयासुर को वरदान दिया, जिसने अपना शरीर यज्ञ के लिए समर्पित कर दिया कि जो कोई भी गया क्षेत्र में जाएगा और वहाँ श्राद्ध करेगा, उसके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी और गयावाल ब्राह्मणों को भगवान ब्रह्मा द्वारा पुरोहित का अधिकार दिया गया।

न्यायालय ने यह भी कहा कि रानी अहिल्या बाई ने विष्णुपद मंदिर का निर्माण बिना किसी रुचि के किया और आम जनता भगवान विष्णुपद की पूजा (और अन्य प्रकार के समारोहों) में भाग ले सकती है।

आस्था और विश्वास के मामले में एम सिद्दीक (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाम महंत सुरेश दास और अन्य (अयोध्या फैसला) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ दिया गया, जिसमें यह माना गया कि एक बार जब न्यायालय के पास यह स्वीकार करने के लिए अंतर्निहित सामग्री होती है कि कोई आस्था या विश्वास वास्तविक है। दिखावा नहीं है तो उसे उपासक की आस्था को स्वीकार करना चाहिए।

हाईकोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि प्रथम अपीलीय न्यायालय ने ट्रस्ट की प्रकृति का निर्णय करते समय रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विचार किया और माना कि गयावाल ब्राह्मण विष्णुपद मंदिर पर अपने विशेष अधिकार, शीर्षक और कब्जे को पुष्ट और विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से साबित करने में बुरी तरह विफल रहे।

चूंकि हाईकोर्ट ने प्रथम अपीलीय न्यायालय की टिप्पणियों को उचित पाया, इसलिए दूसरी अपील खारिज कर दी गई और यह राय कि विष्णुपद मंदिर सार्वजनिक ट्रस्ट है, की पुष्टि की गई।

मंदिर के बारे में

ऐसा माना जाता है कि विष्णुपद मंदिर में बेसाल्ट चट्टान में भगवान विष्णु के 40 सेमी लंबे पदचिह्न हैं। जैसा कि कहानी है, भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर राक्षस गयासुर की छाती पर अपना पैर पटक कर उसका वध किया था। राक्षस को उसके पैर से धरती के नीचे धकेलने के बाद भगवान विष्णु के पदचिह्न चट्टान में बने रहे।

जाहिर है, इंदौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने 1787 में वर्तमान अष्टकोणीय मंदिर का निर्माण करवाया था।

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, गयासुर ने स्वयं भगवान विष्णु और अन्य देवताओं से अपने शरीर पर हमेशा के लिए रहने का अनुरोध किया। उसने भगवान विष्णु से वरदान मांगा था कि जो कोई भी व्यक्ति उस स्थान यानी उसके शरीर पर, जिसे बाद में गया क्षेत्र के रूप में पहचाना गया, जाएगा और वहां श्राद्ध करेगा, उसके पितर (पूर्वज) मोक्ष प्राप्त करेंगे।

केस टाइटल: विष्णुपद भगवान बनाम बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड, डायरी नंबर - 8528/2024

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