मकान बनाने के लिए दुकान बनाना जरूरी नहीं, दिल्ली नगर निगम पर 10 लाख जुर्माना: सुप्रीम कोर्ट:
सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिणी दिल्ली की नगर निकाय (अब नगर निगम दिल्ली) को निर्देश दिया है कि वह 85 वर्ष पुराने जर्जर मकान के पुनर्निर्माण की अनुमति न देने और 15 से अधिक वर्षों तक परिवार को परेशान करने के लिए 10 लाख रुपये का मुआवज़ा दे।
मामला दरियागंज स्थित एक 85 साल पुराने जर्जर मकान से जुड़ा है, जिसे गिराकर नया आवासीय मकान बनाने के लिए मालिकों ने 2010 में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC) को नक्शा स्वीकृति हेतु आवेदन दिया था। निगम ने कोई निर्णय नहीं लिया। इसके बाद मालिकों ने दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की धारा 347A के तहत ट्रिब्यूनल से गुहार लगाई, जिसने deemed sanction दे दी। SDMC की अपील और हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका दोनों खारिज हुईं, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
SDMC ने तर्क दिया कि मास्टर प्लान (MPD-2021) और मिश्रित-उपयोग नियमों के अनुसार, पुराने आवासीय प्लॉट पर नई इमारत बनाते समय भूतल को वाणिज्यिक उपयोग और ऊपरी मंजिलों को आवासीय उपयोग के लिए रखना अनिवार्य है। इसलिए केवल आवासीय भवन बनाना नियमों के विरुद्ध है।
वहीं, मकान मालिकों ने बताया कि उनकी संपत्ति हमेशा आवासीय उपयोग में रही है, उनके पास स्थानांतरण का साधन नहीं है, और वे केवल आवासीय निर्माण की अनुमति चाहते हैं। ट्रिब्यूनल, ADJ और हाई कोर्ट—तीनों ने उनके पक्ष में निर्णय दिया था।
जस्टिस जे.बी. पारडिवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने SDMC का यह तर्क सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह समझ से परे है कि नगर निगम कैसे अपेक्षा कर सकता है कि लोग जर्जर मकान में तो रह सकते हैं लेकिन नया मकान तभी बनाएँ यदि भूतल को वाणिज्यिक बना दिया जाए, जबकि मालिकों का सदैव से आवासीय उपयोग का वैध अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि यह तर्क बिल्कुल अतार्किक है और किसी भी आधार पर टिक नहीं सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस दृष्टिकोण को मंज़ूरी दी कि किसी भी मालिक को यह मजबूर नहीं किया जा सकता कि वह अपने आवासीय भवन के भूतल को वाणिज्यिक इकाई में बदल दे। अदालत ने यह भी कहा कि 85 साल पुराने जर्जर मकान में रहने के लिए मजबूर किए जाने और सुरक्षा की अनदेखी करना नगर निकाय का अमानवीय रवैया है और यह सीधे तौर पर उत्पीड़न है। मुकदमेबाज़ी भी 15 साल से चल रही है और अब परिवार को निर्माण पर अतिरिक्त खर्च भी उठाना पड़ेगा।
फोटोग्राफ़ देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि मकान कभी भी गिर सकता है और निगम को परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित होना चाहिए था, न कि उनके नक्शे पर आपत्ति उठानी चाहिए थी। इसे अदालत ने "मनमानी और अत्याचारपूर्ण" कार्रवाई बताया।
इन परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने SDMC पर 10 लाख रुपये का लागत-मुआवज़ा लगाने का आदेश दिया और निर्देश दिया कि यह राशि 17 दिसंबर 2025 तक परिवार को दी जाए। साथ ही, कोर्ट ने नगर निकाय को आदेश दिया कि वह उत्तरदाता द्वारा प्रस्तुत आवासीय नक्शे को चार सप्ताह के भीतर स्वीकृत करे।