सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 103 वर्षीय दोषी को अंतरिम रिहाई की अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (29 नवंबर) को हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 103 वर्षीय दोषी को अंतरिम रिहाई प्रदान की।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ दोषी द्वारा अंतरिम रिहाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता को 1994 में निचली अदालत ने 1988 के मामले में धारा 302 के तहत हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराया था। वह आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। 2018 में, कलकत्ता हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि की पुष्टि की।
अभियुक्त ने 2020 में उम्र बढ़ने और बीमारियों के आधार पर समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए अदालत में एक रिट याचिका दायर की।
पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश एडवोकेट आस्था शर्मा ने पीठ को सूचित किया कि याचिकाकर्ता अप्रैल 2025 में 104 वर्ष का हो जाएगा।
इतनी अधिक उम्र के साथ आने वाली चिकित्सा जटिलताओं को देखते हुए पीठ ने उसे अंतरिम रिहाई प्रदान की।
न्यायालय के आदेश में लिखा,
"अंतरिम आदेश के रूप में हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता रसिक चंद्र मंडल को वर्तमान रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की जाने वाली शर्तों पर अंतरिम जमानत/पैरोल पर रिहा किया जाएगा।"
पिछले अवसर पर जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस खन्ना की खंडपीठ ने याचिका में नोटिस जारी किया और सुधार गृह (जहां याचिकाकर्ता को स्थानांतरित किया गया) के अधीक्षक को याचिकाकर्ता की वर्तमान शारीरिक स्थिति और स्वास्थ्य के बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा।
केस टाइटल: रसिक चंद्र मंडल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य