सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से रिट याचिका एसएलपी में बदलने की अनुमति दी

Update: 2024-07-25 05:11 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक उल्लेखनीय मामले में हाल ही में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए याचिकाकर्ता को केवल इसलिए वापस नहीं लौटाया, क्योंकि उसने गलत उपाय (अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका) का लाभ उठाया और उसे संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत रिट याचिका को विशेष अनुमति याचिका में बदलने की अनुमति दी।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा,

न्याय के उद्देश्यों के लिए याचिकाकर्ता को याचिका में उपयुक्त संशोधन करने की स्वतंत्रता प्रदान करना समीचीन होगा, जिससे इसे विशेष अनुमति याचिका में परिवर्तित किया जा सके। अगले आदेशों तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई नहीं की जाएगी।"

संक्षेप में कहा जाए तो न्यायालय एक याचिकाकर्ता से निपट रहा था, जिसने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अग्रिम जमानत की मांग करते हुए रिट याचिका दायर की। उन पर निजी शिकायत में आरोप लगाया गया और उन्होंने 2009 में हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर करके कार्यवाही को चुनौती दी। इसके बाद हाईकोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी, लेकिन एशियन रीसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर रोक स्वतः ही समाप्त हो गई।

याचिकाकर्ता इस तथ्य से अनभिज्ञ था कि रोक आदेश निरस्त हो गया। इसके परिणामस्वरूप गाजियाबाद के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया। साथ ही सीआरपीसी की धारा 82 के तहत प्रक्रिया शुरू की। याचिकाकर्ता ने एसीजेएम के आदेश के खिलाफ आपराधिक पुनर्विचार को प्राथमिकता दी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। अग्रिम जमानत की मांग करते हुए उन्होंने फिर अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत उपलब्ध उपाय का लाभ नहीं उठाया, सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार किया। हालांकि, इसने उल्लेख किया कि एशियन रीसर्फेसिंग में दिए गए निर्णय को इस वर्ष हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा खारिज कर दिया गया था।

पवन अग्रवाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में हाल ही में लिए गए निर्णय का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें अपीलकर्ता के पक्ष में हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश को एशियन रीसर्फेसिंग को खारिज करने की तिथि से पुनर्जीवित माना गया।

उपरोक्त पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में भी हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को पुनर्जीवित न करने का कोई कारण नहीं था, विशेष रूप से यह देखते हुए कि हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका लंबित बताई गई।

तदनुसार, याचिकाकर्ता को सेशन जज, गाजियाबाद (जिसने एसीजेएम के आदेश की पुष्टि की) के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका में अपनी याचिका को संशोधित करने की स्वतंत्रता दी गई। न्यायालय में उपस्थित सीनियर एडवोकेट राघेंथ बसंत को इस संबंध में याचिकाकर्ता की सहायता करने के लिए कहा गया। यह मामला 12 अगस्त को सूचीबद्ध है।

केस टाइटल: विजय भूषण गौतम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, WP(Crl) नंबर 245/2024

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