शरीयत कानून को Non-Believer Muslim पर लागू न करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (29 अप्रैल) को रिट याचिका पर नोटिस जारी किया। उक्त याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई कि जो व्यक्ति मुस्लिम पैदा हुआ, लेकिन आस्तिक नहीं रहा, यानी गैर-आस्तिक मुस्लिम (Non-Believer Muslim) पर शरीयत कानून लागू नहीं होगा।
याचिका केरल की सफिया पीएम नाम की महिला ने दायर की। उसने कहा कि वह आस्तिक नहीं है। इसलिए विरासत के संबंध में मुस्लिम पर्सनल लॉ के बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 द्वारा शासित होना चाहिए। याचिकाकर्ता पूर्व मुसलमानों (Ex-Muslims) के एक संगठन की अध्यक्ष है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने विस्तृत चर्चा के बाद इसे "महत्वपूर्ण मुद्दा" बताते हुए याचिका पर भारत संघ और केरल राज्य को नोटिस जारी करने का फैसला किया। पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल से कानून अधिकारी को नामित करने का अनुरोध किया, जो न्यायालय की सहायता कर सके। मामला जुलाई 2024 के दूसरे सप्ताह में पोस्ट किया जाएगा।
शुरुआत में पीठ ने याचिकाकर्ता के प्रस्ताव पर आपत्ति व्यक्त की कि Non-Believer Muslim पर शरीयत अधिनियम लागू नहीं होगा।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत पद्मनाभन से कहा,
"जिस क्षण आप मुस्लिम के रूप में पैदा होते हैं, आप व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित होते हैं। आपके अधिकार या हक आस्तिक या गैर-आस्तिक होने से नियंत्रित नहीं होते हैं।"
पीठ ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत किसी व्यक्ति पर पर्सनल लॉ लागू न होने की घोषणा कैसे कर सकता है, जबकि याचिकाकर्ता ने किसी भी वैधानिक प्रावधान को चुनौती नहीं दी है।
पद्मनाभन ने कहा कि पर्सनल लॉ के अनुसार, कोई मुस्लिम व्यक्ति वसीयत के जरिए अपनी संपत्ति के एक तिहाई से अधिक की वसीयत नहीं कर सकता। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता के पिता भी आस्तिक नहीं हैं। वकील ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं पुरुष उत्तराधिकारियों के केवल एक तिहाई हिस्से की हकदार हैं।
सीजेआई ने बताया कि शरीयत अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, किसी व्यक्ति को शरीयत कानून द्वारा शासित होने के लिए विशिष्ट घोषणा करनी होती है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 विशिष्ट घोषणा करती है कि उत्तराधिकार अधिनियम मुसलमानों पर लागू नहीं होगा। इसलिए यदि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई घोषणा मंजूर कर दी जाती है तो एक शून्य पैदा हो सकता है। पीठ ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 को चुनौती नहीं दी।
पद्मनाभन ने कहा कि याचिकाकर्ता "अजीब स्थिति" में है। उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक हिस्सा नहीं दे सकते। शेष 2/3 हिस्सा उसके भाई को दिया जाएगा, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। वकील ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की एक बेटी है। याचिकाकर्ता की मृत्यु के बाद पूरी संपत्ति उसकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उसके पिता के भाइयों को भी दावा मिलेगा।
जब पीठ ने पूछा कि न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत घोषणा कैसे कर सकता है, तो पद्मनाभन ने जवाब दिया कि संविधान का अनुच्छेद 25 गैर-आस्तिक होने का भी अधिकार देता है और न्यायालय के पास ऐसी घोषणा देने की व्यापक शक्तियां हैं।
सीजेआई ने अवलोकन किया,
"आप मुस्लिम के रूप में पैदा हुए हैं। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 में कहा गया कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं होगा। भले ही आप शरिया अधिनियम की धारा 3 के तहत वसीयत की घोषणा नहीं करते हैं और मुसलमानों की विरासत पर कोई धर्मनिरपेक्ष अधिनियम नहीं है। आपको उस घोषणा की तलाश करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि शरीयत अधिनियम की धारा 3 कहती है कि जब तक आप घोषणा नहीं करते हैं, तब तक आप व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित नहीं होंगे, लेकिन फिर भी एक शून्य है, क्योंकि यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, यानी घोषणा नहीं करेंगे तो आप किसके द्वारा शासित होंगे?"
याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया कि कुरान सुन्नत सोसाइटी द्वारा दायर अन्य याचिका में धारा 58 की जांच चल रही है, जिसमें याचिकाकर्ता ने भी हस्तक्षेप किया।
आख़िरकार पीठ इस मामले पर विचार करने के लिए तैयार हो गई। याचिकाकर्ता के वकील ने जब कहा कि वह धारा 58 के संबंध में आधार उठाएंगे तो पीठ ने याचिका में संशोधन करने की छूट दी।
केस टाइटल: सूफिया पीएम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 135/2024