बेटे ने की थी माँ की हत्या, सुप्रीम कोर्ट ने बरी करते हुए कहा- आत्महत्या की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता

Update: 2025-10-08 15:09 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (8 अक्टूबर) को एक व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसे अपनी माँ की हत्या (मातृहत्या) के लिए दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने यह देखते हुए कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है और अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा।

जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने पाया कि अपीलकर्ता-आरोपी को झूठा फंसाया गया, क्योंकि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि मृतक की मृत्यु किसी भी तरह से हत्या की प्रकृति की थी, जबकि मेडिकल साक्ष्य से पता चलता है कि मृतक सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित है और उसकी मृत्यु आत्महत्या से हुई हो सकती है, एक ऐसा तथ्य, जिसे अभियोजन पक्ष ने खारिज नहीं किया।

यह मामला 2010 में महाराष्ट्र (तलोनी गाँव, अंबाजोगाई) में हुई एक घटना से संबंधित है। पुलिस को एक "संदिग्ध मौत" के बारे में एक अज्ञात सूचना मिली थी। मौके पर पहुंचने पर उन्होंने देखा कि भीड़ मृतक के शव का आनन-फानन में अंतिम संस्कार करने की कोशिश कर रही थी। जब पुलिस ने घोषणा की कि यह हत्या है तो भीड़ तितर-बितर हो गई। इसके बाद हुई जांच में सुनंदा के बेटे नीलेश-अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता मृतक के साथ रह रहा था और उसने आनन-फानन में अंतिम संस्कार किया, जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत एक कारण बनता है।

ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसकी पुष्टि बॉम्बे हाईकोर्ट ने की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई।

समवर्ती निष्कर्षों को दरकिनार करते हुए जस्टिस विश्वनाथन द्वारा लिखे गए फैसले में मामले की उत्पत्ति को ही दोषपूर्ण पाया गया। अदालत ने मामले के सबसे बुनियादी आधार पर "गंभीर संदेह" व्यक्त किया कि क्या मृतक की हत्या की गई।

डॉक्टर ने कहा कि मौत का कारण "गला घोंटने के कारण दम घुटना" था। हालांकि, क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान, उन्होंने स्वीकार किया कि गर्दन के पिछले हिस्से पर लिगेचर मार्क का न होना, जो इस मामले में एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष है, "फांसी के मामले में संभव है।" उन्होंने आगे कहा कि सामान्य गला घोंटने की स्थिति में निशान गर्दन के चारों ओर मौजूद होना चाहिए।

अदालत ने कहा,

"हम यह मानने को बाध्य हैं कि अभियोजन पक्ष द्वारा परीक्षित डॉ. पीडब्लू-6 के बयान के आधार पर इस बात पर गंभीर संदेह उत्पन्न होता है कि क्या मृतक की मृत्यु वास्तव में हत्या के कारण हुई थी। पीडब्लू-6 की स्पष्ट स्वीकारोक्ति कि गर्दन के पिछले हिस्से पर लिगेचर मार्क के न होने पर फांसी लगाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यह इस बात को और पुष्ट करती है कि गला घोंटने की स्थिति में लिगेचर मार्क गर्दन के चारों ओर मौजूद होना चाहिए। यह बात हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचाती है कि यह ऐसा मामला नहीं है, जहां हम सुरक्षित रूप से यह मान सकें कि मृत्यु हत्या से हुई। कोई निश्चित मेडिकल राय नहीं है और पीडब्लू-6 के साक्ष्य में काफी अस्पष्टता को देखते हुए आत्महत्या से मृत्यु की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है।"

अदालत ने कहा,

"अभियोजन पक्ष के मामले की उत्पत्ति और मूल के बारे में एक रहस्य है।"

अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने कभी यह जांच नहीं की कि भीड़ में से किसने दाह संस्कार का आयोजन किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी गवाह ने अपीलकर्ता को उस प्रारंभिक घटनास्थल पर नहीं दिखाया।

अदालत ने आगे कहा,

"पुलिस दल ने मृतक के शरीर पर चोट के निशान देखे और शव को चिता से नीचे उतरवाया। जब यह घोषणा की गई कि मृतक की हत्या कर दी गई तो इस बात के प्रमाण हैं कि भीड़ मौके से भाग गई। इसके बाद अभियोजन पक्ष के अनुसार, एक जांच कराई गई। उसके बाद पीडब्लू-6 द्वारा पोस्टमार्टम कराया गया और कागज़ात सुनील श्रीनिवास (पीडब्लू-9) को सौंपे गए, जिन्होंने 23.07.2010 को 0045 बजे FIR दर्ज की। वहाँ जमा हुई भीड़ से कोई सुराग नहीं मिला और न ही अदालत में किसी से पूछताछ की गई। ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि वर्तमान अपीलकर्ता या मृतक का कोई रिश्तेदार पहले दाह संस्कार के प्रयास वाले स्थान पर मौजूद था।"

अदालत ने कहा,

"पीडब्लू-6 डॉ. सालुंके द्वारा प्रस्तुत मेडिकल साक्ष्य और पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक्स.36 ने भी निर्णायक रूप से हत्या की पुष्टि नहीं की। कथित बरामदगी कम-से-कम उनकी वास्तविकता के बारे में हमारे मन को आश्वस्त नहीं करती है। कथित मकसद स्थापित नहीं हुआ... ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य के आधार पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराने में गंभीर त्रुटि की है।"

तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और दोषसिद्धि रद्द कर दी गई।

Cause Title: Nilesh Baburao Gitte VERSUS State of Maharashtra

Tags:    

Similar News