हाईकोर्ट द्वारा दर्ज किए गए बयान का बाद में वकील द्वारा खंडन नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि हाईकोर्ट रिकॉर्ड कोर्ट हैं और उनकी कार्यवाही में जो कुछ भी दर्ज किया जाता है, उसे सही माना जाता है। बाद में पक्षकारों या वकील द्वारा उसका खंडन नहीं किया जा सकता।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 15 सितंबर, 2025 के आदेश के विरुद्ध दायर विशेष अनुमति याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें प्रथम अपीलीय न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया गया और उसके वकील द्वारा कथित रूप से दिए गए बयान के आधार पर एक अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की गई। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि उसके वकील द्वारा दी गई रियायत अनधिकृत और उसके निर्देशों के विपरीत थी।
इस तर्क को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य बनाम रामदास श्रीनिवास नायक एवं अन्य, (1982) 2 एससीसी 463, के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया और दोहराया कि हाईकोर्ट में कार्यवाही का रिकॉर्ड निर्णायक है।
खंडपीठ ने कहा,
"इस न्यायालय ने बार-बार यह माना है कि भारत में हाईकोर्ट रिकॉर्ड की अदालतें हैं। अदालतों में जो कुछ भी दर्ज किया गया, वह सही है और पक्षकारों के वकील उसका खंडन नहीं कर सकते।"
तदनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट के समक्ष उचित आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए याचिका का निपटारा कर दिया।
Case Title: Savita v. Satyabhan Dixit