केंद्रीय सरकार के विभाग में प्रतिनियुक्ति पर काम करने वाले राज्य सरकार के कर्मचारी को CCS नियमों के अनुसार पेंशन का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-01-14 07:41 GMT
केंद्रीय सरकार के विभाग में प्रतिनियुक्ति पर काम करने वाले राज्य सरकार के कर्मचारी को CCS नियमों के अनुसार पेंशन का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केंद्र सरकार के विभाग में प्रतिनियुक्ति के आधार पर राज्य सरकार के कर्मचारी द्वारा की गई सेवा उसे केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 (CCS Pension Rules) के अनुसार पेंशन का अधिकार नहीं देगी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए भारत संघ की अपील स्वीकार की, जिसने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) का आदेश बरकरार रखा, जिसमें निर्देश दिया गया कि प्रतिवादी कर्मचारी की पेंशन की गणना केंद्रीय वेतनमान के आधार पर की जाए।

यह मामला प्रतिनियुक्ति की व्याख्या और पेंशन पात्रता पर इसके प्रभाव से संबंधित है। प्रतिवादी-फणी भूषण कुंडू 1968 से पश्चिम बंगाल सरकार की सेवा में थे। 1991 में उन्हें भारत सरकार के तहत पशुपालन आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें उक्त पद पर नियुक्त करने वाले पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया कि नियुक्ति 31.08.1992 तक या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, प्रतिनियुक्ति के आधार पर स्थानांतरण द्वारा की गई।

सितंबर, 1992 में वे सेवा से रिटायर हो गए। एक त्रुटि के कारण भारत सरकार ने उन्हें उनके मूल विभाग में वापस नहीं भेजा। हालांकि, उनके पेंशन के कागजात राज्य सरकार द्वारा संसाधित किए गए।

बाद में उन्होंने कैट से संपर्क किया, जिसने 2014 में निर्देश दिया कि उनकी पेंशन पशुपालन आयुक्त के पद के केंद्रीय वेतनमान के आधार पर तय की जानी चाहिए। ऐसी पेंशन पश्चिम बंगाल सेवा (मृत्यु-सह-रिटायरमेंट लाभ) नियम, 1971 (डब्ल्यूबी पेंशन नियम) के बजाय केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमों के तहत देय होगी।

CAT और हाईकोर्ट ने माना कि प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति से कर्मचारी के पक्ष में अपरिवर्तनीय अधिकार बनाया गया और उसने अवशोषित होने का अधिकार हासिल कर लिया था।

मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या प्रतिनियुक्ति पर उनकी सेवा उन्हें केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 (CCS Pension Rule) के तहत पेंशन प्राप्त करने का हकदार बनाती है, या क्या उनकी पेंशन पूरी तरह से पश्चिम बंगाल सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1971 (WB Pension Rule) द्वारा शासित होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की:

"हमारी राय में CAT द्वारा व्यक्त किया गया दृष्टिकोण और हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया, कानून के विपरीत है और टिकाऊ नहीं है। सेवा कानून में 'प्रतिनियुक्ति' शब्द का दायरा और अर्थ इस न्यायालय द्वारा पंजाब राज्य और अन्य बनाम इंदर सिंह और अन्य में समझाया गया, जिसका अर्थ है कैडर के बाहर या मूल विभाग के बाहर सेवा, यानी अस्थायी आधार पर किसी अन्य विभाग में। प्रतिनियुक्ति की अवधि समाप्त होने के बाद ऐसा कर्मचारी उसी पद पर रहने के लिए अपने मूल विभाग में वापस आ जाता है, जब तक कि इस बीच उसने भर्ती नियमों के अनुसार अपने मूल विभाग में पदोन्नति हासिल नहीं कर ली हो। प्रतिनियुक्त व्यक्ति उधार ली गई सेवा/विभाग में नियमित कर्मचारी नहीं बनता है। प्रतिनियुक्त व्यक्ति का मूल विभाग में पद पर अधिकार बना रहता है। प्रतिनियुक्ति से उधार ली गई विभाग/सेवा में आमेलन नहीं होता है।”

न्यायालय ने कहा कि चूंकि प्रतिवादी कर्मचारी केंद्र सरकार के पद पर प्रतिनियुक्ति के आधार पर सेवा कर रहा था और प्रतिनियुक्ति में केंद्र सरकार के स्थायी रोजगार में आमेलन के प्रावधान शामिल नहीं थे, इसलिए CCS Pension Rules के तहत पेंशन के लिए उसका दावा टिकने योग्य नहीं था।

न्यायालय ने कहा,

“भर्ती नियमों के अनुसार पशुपालन आयुक्त का पद प्रतिनियुक्ति के आधार पर स्थानांतरण द्वारा भरा जाना था। नियमों में उक्त पद में किसी आमेलन की कल्पना नहीं की गई। इसलिए यह मानना ​​संभव नहीं है कि प्रतिवादी नंबर 1, फणी भूषण कुंडू एक स्थायी कर्मचारी थे और उनके पास CCS Pension Rules के तहत पेंशन पाने के लिए अर्हता प्राप्त सेवा है।”

चूंकि प्रतिवादी कर्मचारी को पश्चिम बंगाल पेंशन नियमों के अनुसार पेंशन मिल रही थी, जिससे यह साबित होता है कि वह पश्चिम बंगाल राज्य सरकार का कर्मचारी था, इसलिए न्यायालय ने कहा कि वह CCS Pension Rules के अनुसार पेंशन पाने का हकदार नहीं होगा।

तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।

केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम फणी भूषण कुंडू एवं अन्य।

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