न्यायिक सेवा चयन में दिव्यांग श्रेणी के लिए अलग कट-ऑफ अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-03-04 12:26 GMT
न्यायिक सेवा चयन में दिव्यांग श्रेणी के लिए अलग कट-ऑफ अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

न्यायिक सेवाओं (Judicial Service Selection) में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की नियुक्ति के संबंध में अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे परीक्षा के प्रत्येक चरण में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) श्रेणी के लिए अलग कट-ऑफ अंक घोषित करें और अलग मेरिट सूची प्रकाशित करें तथा उसके अनुसार चयन प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा :

"हमारा मानना ​​है कि प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग कट-ऑफ सूची बनाए रखना और उसका संचालन करना अनिवार्य है, जिसमें स्वाभाविक रूप से दिव्यांग श्रेणी भी शामिल है।"

यह मुद्दा राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षाओं में दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए अलग कट-ऑफ अंक प्रकाशित न किए जाने के संदर्भ में उठा था, जबकि महिलाओं, तलाकशुदा उम्मीदवारों और विधवाओं जैसी अन्य क्षैतिज आरक्षण श्रेणियों के लिए स्पष्ट कट-ऑफ निर्दिष्ट और प्रकाशित किए गए। राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने पाया कि नियम 10 के तहत नियम बनाने वाली संस्था ने बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों (PwBD) को अलग से आरक्षण प्रदान करके एक अलग श्रेणी के रूप में परिभाषित किया। नियम 41 में यह अनिवार्य किया गया कि हाईकोर्ट कट-ऑफ अंक निर्धारित करके उम्मीदवारों की श्रेणीवार मेरिट सूची तैयार करे।

बता दें कि न्यायालय ने माना कि कट-ऑफ अंक घोषित न करने से पारदर्शिता प्रभावित होती है, अस्पष्टता पैदा होती है और उम्मीदवारों को उनके परिणामों के आधार के बारे में सूचित नहीं किया जाता। न्यायालय ने कहा कि ऐसे उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया के अगले चरण में जाने के लिए विशेष श्रेणी से संबंधित योग्य उम्मीदवार द्वारा प्राप्त अंतिम अंक के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है।

कोर्ट ने कहा,

"वास्तव में यह दिव्यांग उम्मीदवारों को अन्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ असमान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए बाध्य करता है। इसके अलावा, जब ऊपर उल्लिखित नियमों में दिव्यांगों को अलग श्रेणी के रूप में माना गया और उन्हें आरक्षण दिया गया तो संबंधित अधिकारियों के लिए प्रत्येक चरण में दिव्यांग श्रेणी के लिए अलग-अलग कट-ऑफ अंक घोषित करना अपरिहार्य है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि समान पदों पर आसीन उम्मीदवारों को आरक्षण के उद्देश्य को पूरा करने वाली सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले।"

न्यायालय का यह भी मानना ​​था कि कट-ऑफ अंकों का खुलासा न करने से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है, जहां दिव्यांग उम्मीदवारों का न्यायिक सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता है, जो RPwD Act, 2016 के प्रावधानों के विरुद्ध होगा।

उपर्युक्त संदर्भ में, यह दोहराया गया कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के उद्देश्य से विशेष रूप से रोजगार में, दिव्यांग के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा,

"यह पूरी तरह से स्पष्ट किया गया है कि अधिकारियों द्वारा किया जाने वाला ऐसा कोई भी तकनीकी अंतर कानून में कायम नहीं रह सकता है।"

केस टाइटल: न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की भर्ती के संबंध में बनाम रजिस्ट्रार जनरल, हाईकोर्ट मध्य प्रदेश, एसएमडब्लू (सी) नंबर 2/2024

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