सजा तब निलंबित कर दी जानी चाहिए जब सजा पूरी होने से पहले अपील पर सुनवाई होने की संभावना न हो: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-02-07 05:02 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अदालतों को आम तौर पर उन मामलों में सजा निलंबित कर देनी चाहिए और जमानत दे देनी चाहिए, जहां सजा को चुनौती देने वाली अपील पर पूरी सजा पूरी होने से पहले सुनवाई होने की संभावना नहीं है।

जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने आदेश दिया,

“आदेश से अलग होने से पहले हमें यहां ध्यान देना चाहिए कि इस न्यायालय के कई फैसलों के बावजूद कि जब एक निश्चित अवधि की सजा होती है और विशेष रूप से जब सजा की पूरी अवधि पूरी होने से पहले अपील पर सुनवाई होने की संभावना नहीं होती है तो आम तौर पर सजा और जमानत का निलंबन होता है।''

ऐसे मामलों में जमानत से इनकार करने के दृष्टिकोण से असंतोष जताते हुए डिवीजन बेंच ने कहा:

“हमने पाया कि कई योग्य मामलों में जमानत से इनकार किया जा रहा है। ऐसे मामलों को कभी भी इस न्यायालय के समक्ष लाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।”

मौजूदा मामले में अपीलकर्ता/आरोपी को आईपीसी की धारा 489 (सी) के तहत दोषी ठहराया गया। अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, अपीलकर्ता के पास 44,000/- रुपये के नकली नोट थे। उसे जुर्माने के साथ पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

परेशान होकर उसने उक्त सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी। ऐसा करते हुए उसने जमानत और सजा को निलंबित करने की प्रार्थना करते हुए आवेदन भी दायर किया। आवेदन में उसने यह भी बताया कि वह करीब ढाई साल तक लंबी हिरासत में है।

हालांकि, अपराध की गंभीरता और सबूतों को देखते हुए हाईकोर्ट ने उसकी सजा निलंबित करने से इनकार किया। इस उपरोक्त पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की गई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पांच साल की निश्चित अवधि की सजा में से आधी सजा पहले ही काट चुका है।

कोर्ट ने कहा,

“वर्ष 2022 की सजा के खिलाफ अपील पूरी सजा पूरी करने से पहले पहुंचने की संभावना नहीं है। इसलिए अपील लंबित रहने तक सजा के निलंबन और जमानत देने का मामला बनता है।''

इसे देखते हुए अपील की अनुमति देते हुए अदालत ने ट्रायल कोर्ट को अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। इस निर्देश का पालन हाईकोर्ट के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक किया जाना है।

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