मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम के तहत कार्यवाही के लिए परिसीमा अधिनियम की धारा 14 लागू : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 14 मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम 1996 पर लागू है।
परिसीमा अधिनियम की धारा 14 में गलत फोरम में सद्भावनापूर्ण कार्यवाही करने में व्यतीत समय को सीमा अवधि की गणना से बाहर रखने का प्रावधान है।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि परिसीमा अधिनियम के प्रावधानों की उदारतापूर्वक व्याख्या करना आवश्यक है, क्योंकि मध्यस्थता अवार्ड को चुनौती देने के लिए सीमित समय होता है।
इस मामले में अपीलकर्ता ने मध्यस्थता अवार्ड के खिलाफ हाईकोर्ट में गलत तरीके से अपील दायर की थी। अपीलकर्ता को बाद में एहसास हुआ कि सही उपाय जिला न्यायालय के समक्ष अधिनियम की धारा 34 के तहत अपील दायर करना था।
जिला न्यायालय ने अपील को समय-सीमा समाप्त होने के आधार पर खारिज कर दिया। इसने हाईकोर्ट के समक्ष बिताए गए समय को सीमा अवधि से बाहर करने से इनकार किया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह मुद्दा समेकित इंजीनियरिंग उद्यम बनाम प्रमुख सचिव सिंचाई विभाग 2008 (7) एससीसी 169 के फैसले के अंतर्गत आता है।
न्यायालय ने कहा,
"जब मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 और/या 37 के तहत मूल उपचार अपने स्वभाव से ही वैधानिक नुस्खे के कारण अपने दायरे में सीमित हैं तो सीमा प्रावधानों की उदारतापूर्वक व्याख्या करना आवश्यक है, अन्यथा, मध्यस्थता अवार्ड को चुनौती देने के लिए वह सीमित खिड़की भी खो जाएगी। धारा 34 और 37 के तहत उपचार बहुमूल्य हैं। न्यायालय इन अधिकार क्षेत्रों को लागू करने के लिए सीमा अवधि की गणना करते समय ऐसे उपचार को सुरक्षित और संरक्षित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखेंगे।”
धारा 14 को लागू करते हुए न्यायालय ने माना कि जिला न्यायालय के समक्ष दायर अपील सीमा अवधि के भीतर थी।
केस टाइटल: कृपाल सिंह बनाम भारत सरकार