Sec.31 Specific Relief Act | जिस तीसरे पक्ष के विरुद्ध सेल डीड अमान्य है, उसे रद्द करने की मांग करना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-16 05:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (SR Act) की धारा 31 के अनुसार, तीसरे पक्ष के लिए, जिसके विरुद्ध बिक्री विलेख अमान्य है, उसे रद्द करने की मांग करना अनिवार्य नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि जब पक्षों के बीच सेल डीड निष्पादित किया जाता है तो बिक्री में पक्ष न होने वाले तथा सेल डीड से प्रभावित तीसरे व्यक्ति को SR Act की धारा 31 के अंतर्गत सेल डीड रद्द करने की मांग करते हुए अलग से आवेदन दायर करने के लिए नहीं कहा जा सकता।

वर्तमान मामले में विवाद सह-स्वामी द्वारा अन्य सह-स्वामियों (प्रतिवादी) से प्राधिकरण के बिना सेल डीड के माध्यम से संयुक्त परिवार की पूरी संपत्ति को बाद के खरीदार (यहां अपीलकर्ता) को बेचने के कृत्य की वैधता से संबंधित था। साथ ही जब संपत्ति का हस्तांतरण अपीलकर्ता के पक्ष में हुआ तो संपत्ति में सह-स्वामी का हिस्सा अनिर्धारित रहा।

प्रतिवादी ने सह-स्वामी द्वारा संपूर्ण वाद संपत्ति को अपीलकर्ता को हस्तांतरित करने के कृत्य को इस आधार पर चुनौती दी कि यह हस्तांतरण शून्य है, क्योंकि सह-स्वामी/हस्तांतरक को केवल वाद संपत्ति में अपना हिस्सा साझा करने का अधिकार है, न कि संपूर्ण वाद संपत्ति को अपीलकर्ता को देने का।

प्रतिवादी के तर्क को उचित मानते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि जब संपत्ति में कई सह-स्वामी होते हैं तो वाद संपत्ति का परवर्ती क्रेता (अपीलकर्ता) केवल सह-स्वामी/हस्तांतरक द्वारा निष्पादित सेल डीड के आधार पर संपूर्ण वाद संपत्ति में अधिकार, शीर्षक और हित प्राप्त नहीं कर सकता।

ऐसा करते हुए न्यायालय ने अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क पर भी विचार किया कि चूंकि प्रतिवादी ने सेल डीड रद्द करने के लिए नहीं कहा था, इसलिए सेल डीड अपने आप रद्द नहीं किया जा सकता।

SR Act की धारा 31 पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक मामले में सेल डीड को शून्य घोषित करने के लिए आवेदन दायर करना अनिवार्य नहीं है, खासकर तब जब व्यक्ति/प्रतिवादी विलेख का पक्षकार न हो।

अंत में यह तर्क देने का एक हल्का प्रयास किया गया कि वादी-प्रतिवादी नंदू लाल ने सेल डीड रद्द करने की कोई राहत नहीं मांगी थी, जिसके द्वारा प्रतिवादी-अपीलकर्ता एस.के. गुलाम लालचंद द्वारा संपत्ति खरीदी गई। इसलिए वह इस मुकदमे में किसी भी राहत का हकदार नहीं है।

अदालत ने कहा,

इस तर्क को केवल इस साधारण कारण से खारिज किया गया कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 31 में साधन को शून्य घोषित करने के लिए 'हो सकता है', शब्द का उपयोग किया गया है, जो हर मामले में अनिवार्य नहीं है, खासकर तब जब व्यक्ति ऐसे साधन का पक्षकार न हो।"

मेसर्स एशियन एवेन्यूज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम सैयद शौकत हुसैन, 2023 लाइव लॉ (एससी) 369 में न्यायालय ने माना कि चूंकि किसी लिखत को रद्द करने के लिए विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 31 के तहत शुरू की गई कार्रवाई, विवेचना में की गई कार्रवाई नहीं है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस धारा के अनुसार लिखत रद्द करने से कार्यवाही के केवल पक्षकार ही आबद्ध होंगे। यह उस व्यक्ति के विरुद्ध लागू नहीं होगा, जो लिखतों का पक्षकार नहीं है, अर्थात वर्तमान मामले में प्रतिवादी।

केस टाइटल: एस.के. गुलाम लालचंद बनाम नंदू लाल शॉ @ नंद लाल केशरी @ नंदू लाल बेयस एवं अन्य, सिविल अपील नंबर 4177 वर्ष 2024

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