कंपनी एक्ट, 2013 की धारा 164(2) का वित्त वर्ष 2014-15 से पहले कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-07-25 07:43 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय से प्रथम दृष्टया सहमति व्यक्त की है कि कंपनी एक्ट 2013 (Company Act) की धारा 164(2), जो तीन वित्तीय वर्षों की किसी भी निरंतर अवधि के लिए बैलेंस शीट और वार्षिक रिटर्न दाखिल न करने के कारण निदेशकों को (पांच वर्षों के लिए) अयोग्य ठहराने का प्रावधान करती है, उसका वित्त वर्ष 2014-15 से पहले की अवधि पर कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं है।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने मामले को 12 दिसंबर, 2024 से शुरू होने वाले सप्ताह में आगे के विचार के लिए सूचीबद्ध किया।

इस प्रावधान का संचालन 1 अप्रैल, 2014 को अधिसूचित किया गया और कई हाईकोर्ट ने इस पर अलग-अलग विचार दिए कि क्या यह पूर्वव्यापी रूप से या भावी रूप से लागू होगा।

जबकि इलाहाबाद, गुजरात, केरल और कर्नाटक के हाईकोर्ट्स ने धारा 164(2) को भावी प्रयोज्यता माना था, दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि उक्त धारा 2014 से पहले भी लागू हो सकती है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णय (जिस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई) ने माना कि यह प्रावधान, जो प्रतिकूल और दंडात्मक प्रकृति का है, उस वित्तीय वर्ष पर लागू नहीं किया जा सकता है, जब धारा 164(2) के तहत दी गई किसी भी अयोग्यता को आकर्षित करने वाली ऐसी कोई शर्त नहीं थी।

हाईकोर्ट ने तर्क दिया,

“जो प्रावधान 01.04.2014 से लागू किया गया है और तीन वित्तीय वर्षों की बात करता है, अगर इसे अधिनियम, 2013 की धारा 2 (41) के साथ पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि ऐसा 'वित्तीय वर्ष' संबंधित वर्ष की 1 अप्रैल से शुरू होना चाहिए और 31 मार्च को समाप्त होने वाला वित्तीय वर्ष इसके अंतर्गत नहीं आएगा।'

इसके अलावा, न्यायालय ने प्रावधान की वैधता भी बरकरार रखी और कहा कि यह स्पष्ट वर्गीकरण के आधार पर दागी और बेदाग निदेशकों के बीच सही ढंग से भेद करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है।

इसके विपरीत, दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि उक्त धारा 2014 से पहले के वित्तीय वर्षों के लिए रिटर्न दाखिल करने में विफलता पर लागू हो सकती है, जिस वर्ष उक्त धारा लागू हुई।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कंपनी एक्ट के तहत वित्तीय रिटर्न दाखिल न करना पहले से ही प्रतिबंधित है। इसलिए जब धारा 164 के तहत उसी निषेध की परिकल्पना की गई तो इसके पूर्वव्यापी आवेदन से चूक करने वाली कंपनियों के अधिकारों पर कोई महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।

इसलिए न्यायालय ने माना कि एक्ट की धारा 164 (2) भावी रूप से संचालित होती है। हालांकि, इस तरह के भावी संचालन में 31.03.2014 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष से संबंधित वित्तीय विवरण 30.10.2014 को या उससे पहले दाखिल करने में विफलता को ध्यान में रखना होगा।

केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम जय शंकर अग्रहरि, डायरी संख्या - 10488/2021

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