S. 86 Electricity Act | बिजली उत्पादक और वितरण कंपनियां निजी तौर पर टैरिफ तय नहीं कर सकतीं, नियामक आयोगों की मंज़ूरी ज़रूरी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिजली उत्पादक कंपनी और वितरण लाइसेंसधारी बिजली खरीद समझौते (PPA) के ज़रिए एकतरफ़ा टैरिफ तय नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि टैरिफ़ निर्धारण के लिए विद्युत नियामक आयोग की पूर्व मंज़ूरी ज़रूरी है।
2003 के विद्युत अधिनियम की धारा 86 का हवाला देते हुए अदालत ने कहा:
"बिजली की खरीद के लिए कीमत तय करना किसी उत्पादन कंपनी और वितरण लाइसेंसधारी के बीच निजी बातचीत और समझौते का मामला नहीं है। कीमत के साथ-साथ समझौते, यानी PPA, जिसमें ऐसी कीमत शामिल हो और उस कीमत पर बिजली खरीदने का प्रावधान हो, उसकी इस प्रावधान के तहत राज्य आयोग द्वारा समीक्षा और अनुमोदन आवश्यक है।"
अदालत ने आगे कहा,
"हालांकि, हम स्पष्ट और पुष्टि करते हैं कि कोई भी उत्पादन कंपनी और वितरण लाइसेंसधारी, निजी समझौते के तहत राज्य के भीतर बिजली की आपूर्ति के लिए 2003 के अधिनियम की धारा 86(1)(बी) के तहत विद्युत नियामक आयोग की समीक्षा और अनुमोदन प्राप्त किए बिना स्वयं PPA निष्पादित नहीं कर सकते हैं या अपनी इच्छानुसार टैरिफ निर्धारित नहीं कर सकते हैं।"
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने एक बिजली उत्पादक कंपनी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसने हिमाचल प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (HPERC) की मंजूरी के बिना PPA में टैरिफ दरों में एकतरफा संशोधन के आधार पर हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड (HPSEB) को आपूर्ति की जाने वाली अपनी जलविद्युत के लिए उच्च टैरिफ की मांग की थी।
यह मामला 2000 के एक समझौते से उत्पन्न हुआ था, जिसमें अपीलकर्ता-केकेके हाइड्रो को 3 मेगावाट की परियोजना के लिए ₹2.50 प्रति यूनिट (किलोवाट घंटा) का एक निश्चित टैरिफ दिया गया। HPERC की स्थापना के बाद कंपनी ने 2008 में अपनी क्षमता बढ़ाकर 4.9 मेगावाट कर ली।
इस विवाद की जड़ 2010 में तब शुरू हुई जब KKK हाइड्रो और HPSEB ने एकतरफा तौर पर एक पूरक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत HPERC के एक बाद के आदेश के आधार पर टैरिफ बढ़ाकर ₹2.95 प्रति यूनिट कर दिया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इस बदलाव के लिए HPERC की अनिवार्य स्वीकृति नहीं ली।
HPERC ने बाद में इस कदम को खारिज कर दिया। इस बात पर ज़ोर दिया कि मूल ₹2.50 की दर ही लागू रहेगी। विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) ने 2014 में हस्तक्षेप किया और एक समझौता किया: ₹2.60 प्रति यूनिट का भारित औसत टैरिफ, जिसमें पुरानी और नई परियोजना क्षमताओं के बीच अंतर किया गया। पूरे ₹2.95 न मिलने से असंतुष्ट होकर KKK हाइड्रो ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
₹2.50 प्रति यूनिट (kWh) देने के HPERC के फैसले को बहाल करते हुए जस्टिस संजय कुमार द्वारा लिखित फैसले में कहा गया:
“अपीलकर्ता और HPSEB, 11.03.2008 के PPA में निर्धारित टैरिफ में कोई भी वृद्धि करने से पहले आयोग से अनुमोदन प्राप्त करने के लिए बाध्य थे। ऐसा किए बिना अपीलकर्ता और HPSEB ने आयोग की समीक्षा और अनुमोदन के बिना 10.09.2010 के अपने ₹₹ पूरक PPA के तहत टैरिफ को 2.50/- प्रति kWh से बढ़ाकर 2.95/- प्रति kWh कर दिया!”
अदालत ने आगे कहा,
"संक्षेप में अपीलकर्ता की यह दलील कि उसे 30.03.2000 के PPA द्वारा कवर किए गए ₹3 मेगावाट संयंत्र सहित संपूर्ण परियोजना के लिए 2.95/- प्रति किलोवाट घंटा की बढ़ी हुई दर दी जानी चाहिए, निराधार है।"
परिणामस्वरूप, अपील खारिज कर दी गई।
Cause Title: M/s. KKK Hydro Power Limited versus Himachal Pradesh State Electricity Board Limited and others