कर्मचारियों के लिए उनकी दिव्यांगता की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग रिटायरमेंट आयु निर्धारित करना अनुच्छेद 14 के तहत असंवैधानिक : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-05-30 07:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि कर्मचारियों के लिए उनकी दिव्यांगता की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग रिटायर आयु निर्धारित करना अनुच्छेद 14 के तहत असंवैधानिक है। न्यायालय ने एक लोकोमोटर-दिव्यांग इलेक्ट्रीशियन को राहत दी, जिसे 58 वर्ष की आयु में रिटायर होने के लिए मजबूर किया गया था, जबकि दृष्टिबाधित कर्मचारियों को 60 वर्ष तक सेवा करने की अनुमति दी गई थी।

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांग कर्मचारियों के बीच इस तरह के भेदभाव मनमाने हैं, जो दिव्यांगता कानूनों के तहत समान व्यवहार के सिद्धांत को मजबूत करते हैं। इस तरह सभी बेंचमार्क दिव्यांगताओं के लिए एक समान रिटायरमेंट लाभ अनिवार्य करते हैं।

अपीलकर्ता 60% लोकोमोटर-दिव्यांग इलेक्ट्रीशियन है। उसको हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा 58 वर्ष (30 सितंबर, 2018) में रिटायर किया गया था। हालांकि, 2013 की राज्य नीति (ओएम 29.03.2013) के तहत दृष्टिबाधित कर्मचारियों को 60 साल तक का विस्तार दिया गया। अपीलकर्ता ने दिव्यांग व्यक्ति अधिनियम, 1995 (PwD Act) और दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) का हवाला देते हुए इस नीति को मनमाना भेदभाव बताते हुए चुनौती दी। बाद में ओएम 29.03.2013 को वापस ले लिया गया।

राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण और हाईकोर्ट के समक्ष आवेदनों और रिट याचिका खारिज किए जाने के बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

विवादित निर्णय खारिज करते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत सभी मान्यता प्राप्त दिव्यांगताओं को रिटायरमेंट आयु के संबंध में समान व्यवहार मिलना चाहिए, क्योंकि वे रोजगार-संबंधी लाभों के लिए एक समान श्रेणी का गठन करते हैं।

न्यायालय ने भूपिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के निर्णय की अपनी पिछली पुष्टि का हवाला देते हुए इस सिद्धांत को पुष्ट किया, जिसमें स्पष्ट रूप से माना गया कि कानून दिव्यांगता अधिकार कानून यानी PwD Act और RPwD Act दोनों के तहत संरक्षित सभी दिव्यांगता श्रेणियों में सेवा लाभों में समानता को अनिवार्य बनाता है।

न्यायालय ने कहा,

“एक दिव्यांग श्रेणी को आयु विस्तार का लाभ देने और दूसरी को इससे वंचित करने का कोई समझदारीपूर्ण आधार नहीं दिखाई दिया, जब दोनों को अधिनियम 1995 के साथ-साथ अधिनियम 2016 में निर्दिष्ट किया गया। इस मामले के इस दृष्टिकोण में यदि रिटायरमेंट की आयु के विस्तार का लाभ दृष्टिबाधित श्रेणी के लिए उपलब्ध है तो इसे अधिनियम 1995 में निर्दिष्ट दिव्यांगता की अन्य श्रेणियों के लिए भी उपलब्ध होना चाहिए, जैसा कि अधिनियम 2016 में दोहराया गया।”

परिणामस्वरूप, न्यायालय ने माना कि दिनांक 29.03.2013 के ओएम के तहत प्रदान की गई रिटायरमेंट की आयु के विस्तार का लाभ केवल दृष्टिबाधित श्रेणी तक सीमित नहीं किया जा सकता। बल्कि, यह उन सभी बेंचमार्क दिव्यांगताओं से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उपलब्ध होना चाहिए, जैसा कि अधिनियम 1995 और अधिनियम 2016 में निर्दिष्ट हैं।

जबकि राज्य द्वारा 2019 में विस्तार वापस लेने (ओएम 04.11.2019) को सामान्य खंड अधिनियम के तहत बरकरार रखा गया, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अपीलकर्ता को वापसी की तारीख तक लाभ की वैध उम्मीद है।

तदनुसार, न्यायालय ने अपील को अनुमति दी गई।

Case Title: KASHMIRI LAL SHARMA VERSUS HIMACHAL PRADESH STATE ELECTRICITY BOARD LTD. & ANR.

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