सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राजस्थान सिविल जज कैडर परीक्षा 2024 के नतीजों को चुनौती
राजस्थान सिविल जज कैडर 2024 परीक्षा को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई। उक्त याचिका में कहा गया कि इसकी मूल्यांकन प्रक्रिया मनमाना और त्रुटिपूर्ण थी।
परीक्षा देने वाले 96 उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिका को सोमवार (14 अक्टूबर) को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए उल्लेख किया गया।
वकील ने तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुए कहा कि साक्षात्कार 16 अक्टूबर से शुरू होने जा रहे हैं।
सीजेआई ने मामले को जल्द ही सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने कुल मिलाकर अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी निबंध लेखन पेपर में उन्हें 0 से 15 अंकों की अनुचित रूप से कम स्कोरिंग रेंज दी गई, जिससे उन्हें अंतिम साक्षात्कार चरण के लिए उचित पात्रता से वंचित होना पड़ा।
पृष्ठभूमि: सिविल जज कैडर, 2024 के लिए भर्ती
राजस्थान हाईकोर्ट (भर्ती प्राधिकरण) ने राजस्थान न्यायिक सेवा नियम 2010 के अनुपालन में सिविल जज कैडर में सीधी भर्ती के लिए 222 रिक्तियां खोली। चयन प्रक्रिया कठोर तीन-चरणीय प्रक्रिया का पालन करती है: प्रारंभिक परीक्षा मुख्य परीक्षा और मौखिक परीक्षा (साक्षात्कार) 31 अगस्त और 1 सितंबर, 2024 को आयोजित मुख्य परीक्षा के लिए अर्हता प्राप्त करने वाले लगभग 3,000 उम्मीदवारों में से केवल 638 उम्मीदवार साक्षात्कार चरण में आगे बढ़े।
याचिका के लिए आधार: मूल्यांकन में विसंगतियां और पारदर्शिता की कमी
अभ्यर्थियों का आरोप है कि 1 अक्टूबर 2024 को मुख्य परीक्षा के परिणाम जारी होने के बाद, उनके स्कोरकार्ड में विशेष रूप से अंग्रेजी निबंध पेपर में 0 से 15 के बीच बेवजह कम अंक सामने आए।
यह अनियमित स्कोरिंग उनके मजबूत प्रदर्शन के बिल्कुल विपरीत है, जिससे याचिकाकर्ता साक्षात्कार कट-ऑफ तक पहुंचने में असमर्थ हो गए। निबंध लेखन की व्यक्तिपरक प्रकृति और भाषा के पेपर के लिए किसी भी न्यूनतम योग्यता अंक की अनुपस्थिति को देखते हुए याचिकाकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि इस अपारदर्शी मूल्यांकन पद्धति ने मनमाने परिणाम दिए हैं, जिससे उनके मौलिक अधिकार और करियर प्रभावित हुए हैं।
याचिकाकर्ता प्रणव वर्मा और अन्य बनाम चंडीगढ़ में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और अन्य (2020) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हैं।
उस मामले में न्यायिक सेवा परीक्षाओं में मनमाने मूल्यांकन के इसी तरह के पैटर्न के कारण न्यायालय ने उत्तर पुस्तिकाओं की समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक स्वतंत्र समिति नियुक्त की, जिसने स्कोरिंग में अशुद्धियों का खुलासा किया।
समान परिस्थितियों को देखते हुए याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में भी इसी तरह की स्वतंत्र समीक्षा अनिवार्य करने का आग्रह किया।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति द्वारा उनकी उत्तर पुस्तिकाओं का निष्पक्ष पुनर्मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करे।
उनका तर्क है कि त्रुटिपूर्ण मूल्यांकन प्रक्रिया अनुच्छेद 14 में निहित समान अवसर के उनके संवैधानिक अधिकार को कमजोर करती है। राजस्थान की न्यायपालिका में भर्ती में न्यायिक अखंडता को बनाए रखने के लिए पारदर्शी, निष्पक्ष प्रक्रिया आवश्यक है।
केस टाइटल: एमएस सोनल गुप्ता और अन्य बनाम रजिस्ट्रार जनरल राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर और अन्य