BREAKING| वोटर लिस्ट से हटाए गए लोगों की सूची प्रकाशित करें, नाम हटाने का कारण भी बताएं: सुप्रीम कोर्ट का ECI को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (14 अगस्त) को भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के बाद प्रकाशित वोटर लिस्ट से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं की जिलावार सूची जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर प्रकाशित करे। न्यायालय ने यह भी कहा कि नाम हटाने के कारण जैसे मृत्यु, प्रवास, दोहरा पंजीकरण आदि, स्पष्ट किए जाने चाहिए।
यह जानकारी बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित की जानी चाहिए। दस्तावेजों को EPIC नंबरों के आधार पर सर्च किया जा सके।
इसके अलावा, न्यायालय ने चुनाव आयोग को सार्वजनिक नोटिस में यह भी निर्दिष्ट करने का निर्देश दिया कि छूटे हुए व्यक्ति फाइनल लिस्ट में शामिल होने के लिए अपना दावा प्रस्तुत करते समय अपना आधार कार्ड भी प्रस्तुत कर सकते हैं। समाचार पत्रों, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए कि सूची वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी।
चुनाव आयोग को अगले मंगलवार तक ये कदम उठाने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने Bihar SIR को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ये निर्देश पारित किए।
खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई अगले शुक्रवार (22 अगस्त) के लिए निर्धारित की।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने छूटे हुए मतदाताओं की सूची को कारणों के साथ प्रकाशित करने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया था, जिसका चुनाव आयोग ने यह कहते हुए विरोध किया कि ऐसा करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है।
खुलासे से मतदाताओं का विश्वास बढ़ेगा: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा
खंडपीठ ने कहा कि सूची के साथ-साथ कारणों का खुलासा करने से संस्था में "मतदाताओं का विश्वास" बढ़ेगा। ECI की ओर से जब सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि छूटे हुए मतदाताओं की बूथ-स्तरीय सूचियां पहले ही राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय एजेंटों के साथ साझा की जा चुकी हैं तो खंडपीठ ने पूछा कि मतदाताओं को उनकी स्थिति जानने के लिए राजनीतिक दलों के पास जाने के लिए क्यों मजबूर किया जाना चाहिए।
जस्टिस कांत ने पूछा,
"क्या आपके पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं हो सकता, जहां उन्हें स्थानीय राजनीतिक दल के पीछे न भागना पड़े? आप इसे इंटरनेट पर भी क्यों नहीं करते?"
द्विवेदी ने जब कहा कि मतदाता वेबसाइट पर अपना EPIC नंबर डालकर अपनी स्थिति जान सकते हैं तो खंडपीठ ने सुझाव दिया कि हटाए गए लोगों की सूची स्वयं अपलोड की जाए।
जस्टिस बागची ने पूछा,
"आप सभी मृत/प्रवासित/डुप्लिकेट मतदाताओं के नाम वेबसाइट पर क्यों नहीं डालते?"
जस्टिस कांत ने कहा,
"यदि आप इसे सार्वजनिक डोमेन में लाते हैं तो (चुनाव आयोग के खिलाफ) कहानी गायब हो जाती है।"
जस्टिस बागची ने पूछा,
"हम आपके कुछ न करने की आलोचना नहीं कर रहे हैं... पारदर्शिता से मतदाताओं का विश्वास बढ़ाने में मदद मिलेगी। आप इसे वेबसाइट पर डालने का एक अतिरिक्त कदम क्यों नहीं उठाते, जिसमें स्पष्ट रूप से उन लोगों की पहचान की जाए, जो सूची में नहीं हैं। साथ ही उनके नाम हटाने के कारण भी बताए जाएं, ताकि वे सुधारात्मक उपाय कर सकें?"
जस्टिस कांत ने कहा कि सरल भाषा में एक "आम आदमी के अनुकूल" सार्वजनिक सूचना प्रकाशित की जानी चाहिए, जिसमें कहा जाए कि हटाए गए नामों की सूची वेबसाइट पर उपलब्ध है और वेबसाइट का नाम भी दिया जाना चाहिए।
जस्टिस कांत ने कहा,
"अगर पूनम देवी का नाम हटा दिया गया तो पूनम देवी को यह पता होना चाहिए कि उनका नाम हटाया गया और उनका नाम क्यों हटाया गया।"
आधार को भी सूची में शामिल करें
खंडपीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड को भी स्वीकार्य दस्तावेजों की अपनी 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल करे और इस बात का व्यापक प्रचार करे कि मतदाता आधार कार्ड भी प्रस्तुत कर सकते हैं। हालांकि, 10 जुलाई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार पर भी विचार करने का निर्देश दिया था, लेकिन चूंकि यह चुनाव आयोग द्वारा निर्दिष्ट 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं है, इसलिए मतदाताओं को इसकी जानकारी नहीं हो सकती है।
जस्टिस बागची ने कहा,
"आपकी 11 दस्तावेजों की सूची नागरिक-अनुकूल लगती है, लेकिन आधार और EPIC आसानी से उपलब्ध हैं... आपके नोटिस में कहा जा सकता है कि जिन लोगों ने अभी तक जमा नहीं किया है, वे अपना आधार और EPIC भी जमा कर सकते हैं।"
सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन और एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि फाइल को "सर्चेबल फॉर्ममेट" में अपलोड किया जाना चाहिए।
इस दलील को स्वीकार करते हुए जस्टिस कांत ने कहा,
"इसे सर्चेबल होना चाहिए।"
द्विवेदी ने कमलनाथ मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए इसका विरोध किया, जिसमें कहा गया था कि मतदाता सूची को सर्चेबल फॉर्मेट में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं है।
हालांकि, जस्टिस कांत ने कहा कि दस्तावेज़ को सर्चेबल बनाने में कोई समस्या नहीं है।
दिए गए निर्देश
सुनवाई के बाद खंडपीठ ने निम्नलिखित आदेश दिया:
इस न्यायालय के सुझाव पर चुनाव आयोग ने अंतरिम उपाय के रूप में निम्नलिखित कदमों पर सहमति व्यक्त की-
(i) 65 लाख (लगभग) मतदाताओं की सूची, जिनके नाम 2025 तक मतदाता सूची में थे, लेकिन मसौदा सूची में शामिल नहीं हैं, प्रत्येक जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर (जिलावार) प्रदर्शित की जाएगी। यह जानकारी बूथवार होगी, लेकिन मतदाता के EPIC नंबर के माध्यम से इसे प्राप्त किया जा सकेगा। इसमें मसौदा सूची में नाम शामिल न होने का कारण भी बताया जाएगा।
(ii) जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर 65 लाख मतदाताओं की जानकारी प्रदर्शित होने के बारे में जनता को जागरूक करने के उद्देश्य से बिहार में व्यापक प्रसार वाले स्थानीय समाचार पत्रों में इसका व्यापक प्रचार किया जाएगा। इसे टीवी और रेडियो चैनलों पर भी प्रसारित किया जाएगा। यदि जिला निर्वाचन अधिकारी की कोई आधिकारिक सोशल मीडिया साइट है तो वे उस साइट पर भी सार्वजनिक सूचना प्रदर्शित करेंगे।
(iii) इसके अतिरिक्त, प्रत्येक बूथ स्तरीय अधिकारी द्वारा अपने-अपने प्रखंड विकास/पंचायत कार्यालयों में सूचना पट्ट पर 65 लाख मतदाताओं की बूथवार सूची भी प्रदर्शित की जाएगी ताकि जनता को सूची में शामिल न किए जाने के कारणों सहित मैन्युअल रूप से सूची प्राप्त हो सके।
(iv) सार्वजनिक सूचना में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाएगा कि पीड़ित व्यक्ति आधार कार्ड की प्रति के साथ अपने दावे प्रस्तुत कर सकते हैं।
(v) राज्य निर्वाचन अधिकारी मसौदे में शामिल न किए गए व्यक्तियों की जिलावार सूची की सॉफ्ट कॉपी भी प्राप्त करेंगे और उसे मुख्य निर्वाचन अधिकारी, बिहार की वेबसाइट पर प्रकाशित करेंगे।
(vi) वेबसाइट-सूचियां EPIC-बेस्ड सर्चेबल होंगी।
इससे पहले द्विवेदी ने तर्क दिया था कि ECI के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के साथ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21(3) के अनुसार SIR आयोजित करने के लिए "अधिकारों का एक व्यापक भंडार" है।
पूर्वाह्न सत्र में खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से शेष वकीलों सीनियर एडवोकेट शोएब आलम, एडवोकेट निज़ाम पाशा, रश्मि सिंह, फ़ौज़िया शकील, वृंदा ग्रोवर आदि की सुनवाई पूरी की।
संक्षेप में मामला
12-13 अगस्त के बीच खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (राजद सांसद मनोज कुमार झा की ओर से), डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी (पीयूसीएल, आदि की ओर से) और गोपाल शंकरनारायणन (ADR की ओर से), एडवोकेट प्रशांत भूषण (ADR की ओर से), एडवोकेट वृंदा ग्रोवर और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव द्वारा प्रस्तुत दलीलें सुनीं। गुरुवार को याचिकाकर्ताओं के दावों के विरुद्ध चुनाव आयोग की दलीलें सुनने की योजना थी।
Case Title: ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA, W.P.(C) No. 640/2025 (and connected cases)