प्राइवेट सिटीजन दलीय निष्ठा बदलने के लिए स्वतंत्र; गैर-निर्वाचित व्यक्तियों को छूट देने के लिए 10वीं अनुसूची को चुनौती नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-21 05:24 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (20 सितंबर) को संविधान की 10वीं अनुसूची की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली रिट याचिका खारिज कr। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आधार पर वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती कि दलबदल विरोधी कानून निजी व्यक्तियों पर लागू नहीं होते जो अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलते हैं।

10वीं अनुसूची 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा पेश की गई, जिसमें केंद्र और राज्यों के विधानमंडलों के सदन के सदस्यों के लिए दलबदल विरोधी कानून बनाए गए। संशोधन का उद्देश्य सांसदों को संसद/राज्य विधानमंडल के लिए चुने जाने के बाद एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने से रोकना था।

याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से तर्क दिया कि संविधान सभी नागरिकों पर लागू होता है, लेकिन अनुसूची 10 को शामिल करना केवल विधानमंडल के सदस्यों तक ही सीमित है, जिससे गैर-सदस्य की राजनीतिक निष्ठा बदलने का पहलू पीछे छूट जाता है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी।

सीजेआई ने कहा कि दलबदल विरोधी कानूनों का मुख्य उद्देश्य संसद के सदस्यों को अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलने से रोकना था, न कि प्राइवेट सिटीजन को, क्योंकि पूर्व के आचरण से सरकार बनाने में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होगी।

"लेकिन आप हमें बताएं कि वे प्राइवेट सिटीजन द्वारा एक पार्टी से दूसरी पार्टी में दलबदल के मुद्दे से कैसे निपट सकते थे? प्राइवेट सिटीजन जो पार्टी ए से संबंधित हैं, वे पार्टी बी में जा सकते हैं, इस पर कोई रोक नहीं है।"

सीजेआई ने कहा,

"प्राइवेट सिटीजन अपनी पार्टी की निष्ठा बदलने के लिए स्वतंत्र हैं, किसी प्राइवेट सिटीजन द्वारा किसी भी राजनीतिक दल के प्रति निष्ठा जताने पर कोई रोक नहीं है...लेकिन संविधान संशोधन एक विशेष बुराई से निपटने के लिए था, जो विधानमंडल के सदन के भीतर दलबदल थी।"

पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि किहोटो होलोहन बनाम जचिल्हू और अन्य के संविधान पीठ के फैसले में 10वीं अनुसूची की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी गई। उक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने 52वें संविधान संशोधन की वैधता के साथ-साथ अनुसूची 10 को शामिल करना बरकरार रखा। कहा कि दलबदल के कृत्य को अंतरात्मा की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत असहमति के अधिकार द्वारा संरक्षित नहीं किया जा सकता है।

केस टाइटल: अजीत विष्णु रानाडे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया डब्ल्यू.पी. (सी) नंबर 500/2024

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