पुलिस को Hit & Run दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा योजना के बारे में सूचित करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
Hit & Run (हिट एंड रन) दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई योजना के तहत मुआवजा देने की निराशाजनक दर को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश जारी किए।
मोटर वाहन अधिनियम 1988 (MV Act) की धारा 161 के आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार ने हिट एंड रन मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुआवजा योजना, 2022 बनाई है, जो 1 अप्रैल, 2022 से प्रभावी है। इस योजना के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और चोटों के लिए क्रमशः 2 लाख और 50,000 रुपये का भुगतान किया जाता है, जहां हमलावर वाहन की पहचान नहीं की जाती।
हालांकि, योजना के तहत मुआवज़ा लेने वालों की संख्या बहुत कम है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि वर्ष 2022 में 67,387 हिट एंड रन दुर्घटनाएं हुईं, वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान हिट एंड रन योजना के तहत उठाए गए दावों की संख्या केवल 205 थी, जिनमें से 95 का निपटारा किया गया। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के दस्तावेजों से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में हिट एंड रन मामलों में 660 मौतें हुईं और 113 चोट के मामले हैं, जिनके लिए 184.60 लाख का मुआवजा दिया गया।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा,
"अगर हम हिट एंड रन सड़क दुर्घटनाओं की संख्या और मुआवजे की मांग के लिए दर्ज किए गए मामलों की तुलना करते हैं तो जो बात सामने आती है, वह यह है कि नगण्य संख्या में पीड़ितों ने उक्त योजना का लाभ उठाया।"
खंडपीठ ने अनुमान लगाया कि इसका कारण पीड़ितों के बीच योजना के बारे में जानकारी की कमी हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि हिट एंड रन मामले में पुलिस को पीड़ितों को इस योजना के बारे में जानकारी देनी होगी।
खंडपीठ ने कहा,
"ऐसे मामले हैं, जहां पुलिस और साथ ही दावा जांच अधिकारी इस तथ्य से अवगत हैं कि हिट एंड रन दुर्घटना हुई है। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता कि मुआवजा पाने के हकदार व्यक्ति अपना दावा दायर करें। इसके लिए उचित निर्देश जारी करना होगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि पीड़ितों के कानूनी प्रतिनिधियों, जैसा भी मामला हो, जो योजना के तहत मुआवजे की मांग करने के हकदार हैं, उन्हें योजना की उपलब्धता के बारे में सूचित किया जाए और वे दावे दायर करने में सहायता की।''
खंडपीठ ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
1) यदि दुर्घटना में शामिल वाहन का विवरण क्षेत्राधिकार पुलिस स्टेशन द्वारा दुर्घटना के संबंध में रिपोर्ट दर्ज करने के समय उपलब्ध नहीं है और यदि, उचित प्रयास करने के बाद भी दुर्घटना में शामिल वाहन का विवरण उपलब्ध नहीं हो सका है तो दुर्घटना की रिपोर्ट दर्ज होने की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर पुलिस द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा। पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी घायल या मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों, जैसा भी मामला हो, उसको लिखित रूप में सूचित करेगा कि योजना के तहत मुआवजे का दावा किया जा सकता है। पुलिस द्वारा घायलों या मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों को, जैसा भी मामला हो, संपर्क विवरण जैसे ई-मेल आईडी और क्षेत्राधिकार दावा जांच अधिकारी का कार्यालय पता प्रदान किया जाएगा।
2) पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी दुर्घटना की तारीख से एक महीने के भीतर योजना के खंड 21 के उप-खंड (1) में दिए गए अनुसार एफएआर को दावा जांच अधिकारी को अग्रेषित करेगा। उक्त रिपोर्ट की कॉपी अग्रेषित करते समय चोट के मामले में पीड़ितों के नाम और मृत पीड़ित के कानूनी प्रतिनिधियों के नाम (यदि पुलिस स्टेशन के पास उपलब्ध हो) भी क्षेत्राधिकार वाले दावा जांच अधिकारी को भेजे जाएंगे, जो इसे अलग रजिस्टर में दर्ज किया जाए। दावा जांच अधिकारी द्वारा पूर्वोक्त एफएआर और अन्य विवरण प्राप्त होने के बाद यदि दावा आवेदन एक महीने के भीतर प्राप्त नहीं होता है तो दावा जांच अधिकारी द्वारा संबंधित जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को अनुरोध के साथ जानकारी प्रदान की जाएगी। दावेदारों से संपर्क करने और दावा आवेदन दाखिल करने में उनकी सहायता करने का अधिकार है।
3) प्रत्येक जिला स्तर पर निगरानी समिति का गठन किया जाएगा, जिसमें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव, जिले के दावा जांच अधिकारी या, यदि एक से अधिक हैं, तो राज्य सरकार द्वारा नामित दावा जांच अधिकारी शामिल होंगे। पुलिस अधिकारी, जो पुलिस डिप्टी सुपरिटेंडेंट के स्तर से नीचे का न हो, जिसे जिला पुलिस सुपरिटेंडेंट द्वारा नामित किया जा सके। जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव निगरानी समिति के संयोजक होंगे। जिले में योजना के कार्यान्वयन और उपरोक्त निर्देशों के अनुपालन की निगरानी के लिए समिति हर दो महीने में कम से कम एक बार बैठक करेगी।
4) दावा जांच अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि उसकी सिफारिश और अन्य दस्तावेजों वाली रिपोर्ट विधिवत भरे हुए दावा आवेदन की प्राप्ति से एक महीने के भीतर दावा निपटान आयुक्त को भेज दी जाए।
समय-सीमा अवधि में छूट देने पर
खंडपीठ ने कहा कि 2022 योजना किसी समय-सीमा अवधि का प्रावधान नहीं करती है। हालांकि, पहले की सोलेटियम योजना में दुर्घटना की तारीख से दावा दायर करने के लिए 6 महीने की सीमा अवधि का प्रावधान है, जिसे 12 महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
खंडपीठ ने केंद्र सरकार को इस बात पर विचार करने का निर्देश दिया कि क्या कोई संशोधन किया जा सकता है, जिससे जो लोग सोलेटियम योजना के तहत आवेदन करने के हकदार है, वे एक बार के उपाय के रूप में बढ़ाए गए समय के भीतर आवेदन कर सकें। इसका कारण यह है कि कई पीड़ितों को सोलेटियम योजना के तहत आवेदन करने के अपने अधिकार के बारे में जानकारी नहीं होगी।
विचार करें कि क्या मुआवज़े की रकम बढ़ाई जा सकती है
खंडपीठ ने हिट एंड रन मामलों से होने वाली मृत्यु और गंभीर चोटों के लिए क्रमशः 2 लाख रुपये और 50,000 रुपये की मुआवजा राशि में संशोधन का सुझाव दिया।
खंडपीठ ने कहा,
"समय के साथ पैसे का मूल्य कम होता जाता है। हम केंद्र सरकार को इस बात पर विचार करने का निर्देश देते हैं कि क्या मुआवजे की राशि को धीरे-धीरे सालाना बढ़ाया जा सकता है। केंद्र सरकार आज से आठ सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर उचित निर्णय लेगी।"
खंडपीठ ने स्थायी समिति को योजना के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का भी निर्देश दिया।
अनुपालन की निगरानी के लिए पीठ 22 अप्रैल, 2024 को मामले पर अगली सुनवाई करेगी।
केस टाइटल: एस राजसीकरण बनाम भारत संघ और अन्य
आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें