POCSO Act | दर्दनाक यौन उत्पीड़न के पीड़ित बच्चे को बार-बार अदालत में गवाही देने के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-08-28 10:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO Act) के तहत मामले में आरोपी की याचिका खारिज की, जिसमें CrPC की धारा 311 के तहत पीड़िता को वापस बुलाने की मांग की गई, जिससे बचाव पक्ष द्वारा पहले ही जिरह की जा चुकी थी।

कोर्ट ने कहा कि एक बार जब बचाव पक्ष को पीड़िता से जिरह करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए तो पीड़िता को आगे की जिरह के लिए वापस नहीं बुलाया जा सकता, क्योंकि इससे POCSO Act का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कहा,

"जब पीड़िता की पहले ही दो बार जांच की जा चुकी है। फिर उससे लंबी क्रॉस एक्जामिनेशन की जा चुकी है तो विशेष रूप से POCSO Act के तहत अपराधों के मुकदमे में पीड़िता को वापस बुलाने के लिए यांत्रिक रूप से आवेदन की अनुमति देना कानून के उद्देश्य को ही विफल कर देगा।"

न्यायालय का यह अवलोकन POCSO Act की धारा 33 (5) की शाब्दिक व्याख्या पर आधारित था, जो विशेष न्यायालय पर यह सुनिश्चित करने का दायित्व डालता है कि किसी बच्चे को न्यायालय के समक्ष अपनी गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए। यह सुनिश्चित करना है कि यौन उत्पीड़न के दर्दनाक अनुभव से पीड़ित बच्चे को उसी घटना के बारे में गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए।

न्यायालय ने आगे कहा,

"इस प्रावधान के पीछे विधायी मंशा स्पष्ट है। यह सुनिश्चित करना है कि यौन उत्पीड़न के दर्दनाक अनुभव से पीड़ित बच्चे को उसी घटना के बारे में गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए।"

साथ ही न्यायालय द्वारा यह स्पष्टीकरण दिया गया कि यद्यपि धारा 33(5) पीड़ित को गवाह के रूप में री-ट्रायल के लिए वापस बुलाने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती। फिर भी प्रत्येक मामले को उसके तथ्यों और परिस्थितियों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) बनाम शिव कुमार यादव के मामले का संदर्भ दिया गया, जिसकी रिपोर्ट (2016) 2 एससीसी 402 में दी गई थी, जहां न्यायालय ने उन सिद्धांतों को संक्षेप में प्रस्तुत किया, जो CrPC की धारा 311 के तहत न्यायालय की शक्ति के प्रयोग का मार्गदर्शन करेंगे।

न्यायालय ने कहा,

“इस न्यायालय द्वारा (शिव कुमार यादव के मामले में) यह निर्धारित किया गया कि सबसे पहले धारा 311 के तहत गवाह को वापस बुलाने की दलील सद्भावनापूर्ण और वास्तविक होनी चाहिए। दूसरे, धारा 311 के तहत गवाह को वापस बुलाने के आवेदन को स्वाभाविक रूप से स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए और न्यायालय को दिए गए विवेक का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए, न कि मनमाने ढंग से।”

यह पाते हुए कि बचाव पक्ष के वकील को पीड़िता से क्रॉस एक्जामिनेशन करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए, न्यायालय ने माना कि अभियुक्त/अपीलकर्ता के वापस बुलाने के आवेदन को स्वीकार करना न्याय के हित में नहीं होगा।

तदनुसार, अभियुक्त द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: माधव चंद्र प्रधान एवं अन्य बनाम ओडिशा राज्य, विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) संख्या 10082/2024

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