प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या 1200 से बढ़ाकर 1500 करने के चुनाव आयोग के निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2024-10-25 04:10 GMT

भारत के चुनाव आयोग (ECI) के उस संचार को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई, जिसके तहत प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1200 से बढ़ाकर 1500 कर दी गई।

जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर महादेवन की पीठ के समक्ष यह मामला सूचीबद्ध किया गया, जिसने बिना कोई नोटिस जारी किए निर्देश दिया कि याचिका की अग्रिम प्रति चुनाव आयोग के नामित/स्थायी अधिवक्ता को दी जाए, जिससे वे तथ्यात्मक स्थिति पर निर्देश प्राप्त कर सकें और अगली तिथि पर न्यायालय में उपस्थित हो सकें।

यह मामला 02.12.2024 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया गया।

सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी याचिकाकर्ता (सोशल एक्टिविस्ट) की ओर से पेश हुए और तर्क दिया कि प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या में 1200 से 1500 की वृद्धि मतदाताओं के लिए चुनौतियां पैदा करती है और यह मतदाता वंचितता का कार्य है। यह तर्क दिया गया कि विवादित तदर्थ निर्णय से वंचित समूहों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि वे मतदान के लिए असंगत समय नहीं निकाल सकते हैं।

07.08.2024 के विवादित संचार के खंड 7.4 (iii) को पढ़ते हुए सिंघवी ने समझाया कि यदि मतदान केंद्र पर 1500 तक मतदाता हैं तो कोई युक्तिकरण नहीं होगा। केवल यदि संख्या 1500 से अधिक है तो एक नया मतदान केंद्र अस्तित्व में आएगा। सीनियर वकील ने कुछ समाचार पत्रों की रिपोर्टों का भी हवाला दिया, जिसमें बताया गया कि मतदाता लंबी कतारों/प्रतीक्षा अवधि और खराब मौसम की स्थिति के कारण हतोत्साहित हो जाते हैं।

उनकी बात सुनते हुए जस्टिस खन्ना ने टिप्पणी की कि ECI भी नहीं चाहेगा कि मतदाता हतोत्साहित हों। जज ने कहा कि वह चाहेंगे कि अधिक से अधिक मतदाता अपना वोट डालें और मतदान में लगने वाले समय को यथासंभव कम किया जाए। इस स्तर पर नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए पीठ ने सिंघवी से कहा कि वह याचिका की अग्रिम प्रति ECI को सौंप दें।

सीनियर एडवोकेट ने जब जोर दिया कि तत्काल राहत की आवश्यकता है तो जस्टिस खन्ना ने कहा कि अतीत में (EVM-VVPAT निर्णय के समय) ECI ने भी वोट डालने में लगने वाले समय पर अपना रुख बताया और याचिकाकर्ता को इसकी जांच करनी चाहिए।

याचिका में क्या कहा गया?

संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की गई, जिसमें ECI द्वारा जारी दिनांक 07.08.2024 और 23.08.2024 के संचार को चुनौती दी गई, जिसमें प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या बढ़ाई गई। यह कहा गया कि यह मुद्दा पूरे देश से संबंधित है और निकट भविष्य में महाराष्ट्र, बिहार और दिल्ली (जहां जल्द ही चुनाव होने हैं) से भी संबंधित है। याचिकाकर्ता के अनुसार, प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या बढ़ाने का निर्णय किसी भी डेटा द्वारा समर्थित नहीं है। इसका उद्देश्य प्राप्त करने के साथ कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।

"2011 से कोई जनगणना नहीं हुई। इस प्रकार, चुनाव आयोग के पास मतदाताओं की संख्या 1200 से बढ़ाकर 1500 करने के लिए कोई नया डेटा नहीं है। इस सीमा को बढ़ाकर प्रतिवादी संख्या 1 ने मतदान केंद्रों की परिचालन दक्षता से समझौता किया, जिससे संभावित रूप से प्रतीक्षा समय लंबा हो सकता है, भीड़भाड़ हो सकती है और मतदाता थक सकते हैं।"

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 25 का संदर्भ दिया गया, जो निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान केंद्रों के प्रावधान से संबंधित है।

याचिका में कहा गया,

कानून के तहत मतदान केंद्रों की "पर्याप्तता" का अर्थ मतदान में संरचनात्मक बाधाओं का कारण न बनना और हाशिए पर पड़े समूहों द्वारा मतदान को सक्षम बनाना होना चाहिए। इसके अलावा, उक्त अधिनियम की धारा 25 को इस तरह से पढ़ा जाना चाहिए कि इससे लोकतंत्र मजबूत हो, न कि मतदाताओं के बहिष्कार की संभावना पैदा हो - खासकर तब जब ECI की शुरुआत के साथ वोट डालने और गिनने की वास्तविक प्रक्रिया 1951 की तुलना में काफी आसान हो गई।"

इसके अलावा, याचिकाकर्ता का दावा है कि एक मतदाता को अपना वोट डालने में लगभग 60-90 सेकंड लगते हैं। चूंकि चुनाव आमतौर पर 11 घंटे तक चलते हैं, इसका मतलब है कि प्रति मतदान केंद्र केवल 495-660 व्यक्ति ही मतदान कर सकते हैं। 65.7% के औसत मतदान प्रतिशत को ध्यान में रखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 1000 मतदाताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार एक मतदान केंद्र लगभग 650 मतदाताओं को समायोजित कर सकता है। हालांकि, ऐसे बूथ हैं, जहां मतदाताओं का मतदान 85-90% के बीच है।

"ऐसी स्थिति में लगभग 20% मतदाता या तो मतदान के घंटों के बाद कतार में खड़े रहेंगे या लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के कारण अपने मताधिकार का प्रयोग करना छोड़ देंगे। प्रगतिशील गणराज्य या लोकतंत्र में दोनों ही चीजें स्वीकार्य नहीं हैं।"

याचिकाकर्ता का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं को समायोजित करने के लिए मतदान केंद्र के बुनियादी ढांचे में आनुपातिक विस्तार होना चाहिए।

उल्लेनीय है कि 2016 में ECI ने निर्देश दिया था कि एक मतदान केंद्र को सौंपे गए मतदाताओं की अधिकतम संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 1,200 और शहरी क्षेत्रों में 1,400 तक सीमित होनी चाहिए। अब संख्या में फिर से वृद्धि होने के कारण मताधिकार से वंचित होने की संभावना है।

"प्रति मतदान केंद्र ऊपरी सीमा बढ़ाने की यह प्रथा मतदाता वंचितता के अलावा और कुछ नहीं है। इसका परिणाम हाशिए पर पड़े समुदायों और कम आय वाले समूहों पर असमान प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक, नौकरानियां, ड्राइवर, विक्रेता, आदि, जिनके लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के परिणामस्वरूप मजदूरी से वंचित होना पड़ता है।"

याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि चुनाव आयोग प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या 1200 (जैसा कि 1957-2016 से किया गया) बनाए रखे और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 25 के अनुसार पर्याप्त संख्या में मतदान केंद्र बनाए। इसके अतिरिक्त, चुनाव आयोग को निर्देश दिया गया है कि वह, "मतदान के अधिकार के प्रयोग में संरचनात्मक/संस्थागत बाधाओं को दूर करके, गैर-प्रतिगामी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या को उत्तरोत्तर (अर्थात भविष्य के लिए) कम करे।"

केस टाइटल: इंदु प्रकाश सिंह बनाम भारत का चुनाव आयोग और अन्य, डायरी नंबर 49052-2024

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