PC Act | रिश्वत की मांग के सबूत के बिना केवल दागी धन की वसूली दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केवल दागी धन की वसूली भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act (PC Act)) की धारा 20 के तहत दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि घटनाओं की पूरी श्रृंखला यानी मांग, स्वीकृति और वसूली स्थापित न हो जाए।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने इस प्रकार जाति प्रमाण पत्र अग्रेषित करने के लिए स्कूल शिक्षक से ₹1,500 रिश्वत मांगने के आरोपी एक लोक सेवक को बरी कर दिया, यह पाते हुए कि मांग का तत्व स्थापित नहीं हुआ था, इस तथ्य के बावजूद कि अन्य दो घटक - दागी धन की स्वीकृति और वसूली सिद्ध हो गई।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“इस हद तक हाईकोर्ट का अवलोकन सही है कि सिर्फ इसलिए कि वर्तमान जैसे मामलों में धन का आदान-प्रदान हुआ, यह स्वतः नहीं माना जा सकता कि यह मांग के परिणामस्वरूप हुआ था, क्योंकि कानून के अनुसार अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए मांग, स्वीकृति और वसूली से शुरू होने वाली पूरी श्रृंखला पूरी होनी चाहिए। इस मामले में जब प्रारंभिक मांग ही संदिग्ध है, भले ही भुगतान और वसूली के दो अन्य घटक सिद्ध हो जाएं तो भी श्रृंखला पूरी नहीं होगी।”
यह वह मामला था, जिसमें प्रतिवादी पर जाति वैधता प्रमाण पत्र रिपोर्ट अग्रेषित करने के लिए शिकायतकर्ता (शिक्षक) से रिश्वत मांगने का आरोप लगाया गया। एक जाल बिछाया गया और प्रतिवादी से दागी मुद्रा बरामद की गई। प्रतिवादी ने दावा किया कि यह धन एक व्यक्तिगत ऋण की अदायगी थी।
ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया, लेकिन हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता और मांग के सबूत पर संदेह करते हुए उसे बरी कर दिया।
हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह द्वारा लिखित निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया कि जब तक अभियोजन पक्ष मांग और स्वीकृति को जोड़ने वाली घटनाओं की पूरी श्रृंखला स्थापित नहीं कर लेता, तब तक केवल दागी धन की वसूली ही अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि दोष की कोई धारणा नहीं बनती है, जिसका अभियुक्त खंडन कर सके।
चूंकि मांग का तथ्य संदेहास्पद है, इसलिए न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के मामले को गलत साबित करने का भार अभियुक्त पर न डालना उचित समझा।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा ऊपर की गई चर्चाओं के समग्र परिप्रेक्ष्य में हमें अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत कोई ऐसा आधार नहीं मिला, जिसके लिए इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता हो। इसलिए आरोपित निर्णय को बरकरार रखा जाता है।”
उपर्युक्त के संदर्भ में, न्यायालय ने अपील खारिज की और दोषमुक्ति बरकरार रखी।
Case Title: STATE OF LOKAYUKTHA POLICE, DAVANAGERE VERSUS C B NAGARAJ