बिना स्वामित्व वाले व्यक्ति द्वारा विक्रय पत्र निष्पादित किए जाने पर संपत्ति पर स्वामित्व का दावा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वादी के पक्ष में उस व्यक्ति (जो संपत्ति का मालिक नहीं है) द्वारा निष्पादित सेल्स डीड वादी को ऐसी संपत्ति पर स्वामित्व/कब्ज़ा का दावा करने का अधिकार नहीं देगा।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए कहा कि केवल उस व्यक्ति की भागीदारी, जिसके पास संपत्ति पर स्वामित्व नहीं है, हस्ताक्षरकर्ता के रूप में सेल्स डीड के निष्पादन से वादी को संपत्ति के स्वामित्व/शीर्षक का दावा करने का अधिकार नहीं मिलेगा।
हाईकोर्ट ने अपने निष्कर्षों वादी को संपत्ति का मालिक माना था।
खंडपीठ ने कहा,
“परिणामस्वरूप, मेघराज (प्रतिवादी नंबर 2) की संपत्ति का स्वामित्व उक्त विक्रय पत्र के तहत पारित नहीं हुआ, भले ही उसकी मां (प्रतिवादी नंबर 1) अपनी व्यक्तिगत क्षमता में उस पर हस्ताक्षरकर्ता थी। इसलिए ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले पूरी तरह से वैध और उचित है और हाईकोर्ट ने अपनी धारणाओं को लागू करके और तथ्य और कानून के अपने निष्कर्षों को उलट कर इसे पलटने में गलती की।''
मामले की पृष्ठभूमि
संपत्ति प्रतिवादी नंबर 2 यानी, प्रतिवादी नंबर 1 का बेटा (प्रतिवादी नंबर 2 की मां) के पक्ष में 'वसीयत' के माध्यम से वसीयत की गई थी। संपत्ति की वसीयत प्रतिवादी नंबर 1 के पिता (बाबूलाल) ने अपने बेटे के पक्ष में कर दी गई।
बाबूलाल द्वारा धारित विभिन्न संपत्तियों के विक्रय पत्र वादी/प्रतिवादी के पक्ष में निष्पादित किये गये। प्रतिवादी नंबर 1/मां ने सेल्स डीड के निष्पादन में भाग लिया और सेल्स डीड पर हस्ताक्षरकर्ता थी। वादी के पक्ष में निष्पादित विभिन्न सेल्स डीड में से प्रतिवादी नंबर 2/वास्तविक मालिक के पक्ष में वसीयत की गई संपत्ति का सेल्स डीड भी वादी के पक्ष में निष्पादित किया गया और प्रतिवादी नंबर 1 उस सेल्स डीड पर हस्ताक्षरकर्ता था। हालांकि, प्रतिवादी नंबर 2/वास्तविक मालिक बिक्री के निष्पादन में एक पक्ष नहीं था।
वादी ने वसीयत की गई 'वसीयत' संपत्ति के स्वामित्व/कब्जे की मांग इस नोट पर की कि प्रतिवादी नंबर 1, प्रतिवादी नंबर 2 की मां/वास्तविक मालिक होने के नाते सेल्स डीड के निष्पादन के लिए हस्ताक्षरकर्ता थी।
हालांकि, प्रतिवादी नंबर 1 ने तर्क दिया कि उसने न तो वाद की संपत्ति वादी को बेची और न ही उसने वादी को उसका कब्ज़ा दिया। उसने कहा कि चूँकि वह पढ़ी-लिखी नहीं थी और उसे वादी के पक्ष में अन्य बिक्री कार्यों को निष्पादित करने वाले रिश्तेदारों पर भरोसा था, इसलिए उसने बार-बार बिक्री कार्यों पर हस्ताक्षर किए।
ट्रायल कोर्ट साथ ही प्रथम अपीलीय न्यायालय ने वादी के मुकदमे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि विवादित संपत्ति का स्वामित्व प्रतिवादी नंबर 2 में निहित होने के कारण वादी के पक्ष में पारित नहीं किया जा सकता।
हालांकि, दूसरी अपील में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत के निष्कर्षों को उलट दिया और वादी/प्रतिवादी को असली मालिक घोषित कर दिया।
यह हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध है कि प्रतिवादी/अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सिविल अपील दायर की।
केस टाइटल: सवित्री बाई और अन्य बनाम सवित्री बाई, सिविल अपील नंबर 9035, 2013।