Overcharge v. Illegal Charge: सुप्रीम कोर्ट ने माल ढुलाई शुल्क की वापसी पर इंडियन ऑयल के खिलाफ रेलवे की अपील खारिज की

Update: 2024-03-25 06:37 GMT

माल ढुलाई शुल्क के अधिक भुगतान से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में रेलवे के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि उसने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) पर 444 किलोमीटर के लिए अवैध शुल्क लगाया, जबकि वास्तविक प्रासंगिक दूरी केवल 334 किलोमीटर है।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आईओसी के पक्ष में दिए गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ रेलवे द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया।

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

आईओसी ने 2002-2005 के बीच निश्चित मार्ग पर रेलवे के माध्यम से फर्नेस ऑयल की खेप बुक की। इसके लिए मालभाड़े की गणना 444 किलोमीटर की 'कुल प्रभार्य दूरी' (प्रचलित दूरी तालिका के अनुसार) के आधार पर की गई। अप्रैल, 2004 में रेलवे ने प्रभार्य दूरी की गणना करने की विधि को संशोधित किया। नई पद्धति में मानों को पूर्णांकित करना और दूरी तालिकाओं में संशोधन की आवश्यकता शामिल है।

अंततः, आईओसी को पता चला कि विषयगत मार्ग के लिए भौतिक ट्रैक की लंबाई में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वास्तविक दूरी वास्तव में 333.18 किमी है, फिर भी रेलवे 444 किमी की प्रभार्य दूरी पर माल ढुलाई कर रहा है। सबसे पहले रेलवे को मालभाड़े में 110 किमी के अंतर का रिफंड मांगने के लिए दावे का नोटिस भेजा गया। यह मांग 122 कंसाइनमेंट के संबंध में है। हालांकि रेलवे ने सभी दावों को खारिज कर दिया।

इसके बाद आईओसी ने इसी तरह की राहत के लिए रेलवे दावा न्यायाधिकरण से संपर्क किया। पक्षकारों के बीच हुई कुछ बैठकों के जवाब में लगभग 45 दावों को यह मानते हुए वापस कर दिया गया कि वे रेलवे अधिनियम, 1890 की धारा 78 बी (अब रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 106) के तहत 6 महीने की वैधानिक अवधि के भीतर किए गए; दावे के लिए नोटिस से निपटना मुआवजे और अधिभार की वापसी)।

ट्रिब्यूनल ने शेष 77 आवेदनों को समय-बाधित के रूप में खारिज किया, यह देखते हुए कि दावों के नोटिस 6 महीने की वैधानिक अवधि के भीतर नहीं भेजे गए और 'अतिभार' के लिए धनवापसी की मांग की गई। हालांकि, यह नोट किया गया कि शुल्क योग्य दूरी केवल 334 किलोमीटर है। हालांकि माल ढुलाई शुल्क 444 किलोमीटर के लिए लगाया गया।

इस पृष्ठभूमि में आईओसी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष अपील की, जिसने अपील को यह मानते हुए अनुमति दी कि चूंकि माल ढुलाई का भुगतान अधिसूचित शुल्क योग्य दूरी के अनुसार किया गया, जो बाद में गलत पाया गया, यह "अवैध शुल्क" का मामला है और "ओवरचार्ज" का नहीं। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मामला

दलीलों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सवालों पर अपना फैसला सुनाया:

(i) रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 106(3) का दायरा क्या है और/या प्रावधान के अर्थ में "अतिभार" क्या है? इसके अलावा, "अधिक शुल्क" और "अवैध शुल्क" के बीच क्या अंतर है?

(ii) क्या माल ढुलाई शुल्क में 110 किलोमीटर के अंतर की वापसी के लिए आईओसी का दावा 'अतिभार' की वापसी के लिए है और/या धारा 106(3) के तहत कवर किया गया?

(iii) क्या माल ढुलाई में 110 किलोमीटर का अंतर वापस किया जाना है? दूसरे शब्दों में, क्या '444 किलोमीटर' की अधिसूचित प्रभार्य दूरी अवैध शुल्क है या नहीं?

केस टाइटल: भारत संघ बनाम मेसर्स इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, सिविल अपील नंबर 1891-1966 ऑफ़ 2024

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