नोटरी द्वारा नोटरी रजिस्टर में प्रविष्टि न करना कदाचार : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-09-21 09:02 GMT

एक मामले में जहां नोटरी पर आरोप लगाया गया कि उसने याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति में उसके हलफनामे को नोटरीकृत किया और याचिकाकर्ता ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने से इनकार किया था, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि नोटरी नियम 1956 के नियम 11 का उल्लंघन करते हुए नोटरी की ओर से किया गया कोई भी कार्य या चूक कदाचार के बराबर होगी। ऐसा नोटरी नोटरी बनने के लिए अयोग्य होगा।

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा,

"नोटरी एक्ट 1952 नोटरी के पेशे को नियंत्रित करता है। नोटरी के कार्य और कर्तव्य इसकी धारा 8 में वर्णित हैं। नोटरी द्वारा व्यवसाय का लेन-देन नोटरी नियम 1956 के नियम 11 में निहित है। नोटरी की ओर से किया गया कोई भी कार्य या चूक कदाचार के बराबर होगी, जिस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत की गई है, वह नोटरी बनने के लिए अयोग्य होगा।"

संदर्भ के लिए, नोटरी नियमों के नियम 11 में यह निर्धारित किया गया कि नोटरी को अपना व्यवसाय किस प्रकार संचालित करना चाहिए। नियम 11(2) के अनुसार, प्रत्येक नोटरी को निर्धारित प्रपत्र में नोटरी रजिस्टर बनाए रखना होगा।

वर्तमान मामले में संबंधित नोटरी ने नोटरी रजिस्टर में याचिकाकर्ता के हलफनामे के सत्यापन के संबंध में कोई प्रविष्टि नहीं की।

इसे इस प्रकार स्पष्ट करने का प्रयास किया गया:

"यह कि अभिसाक्षी ने भगवान सिंह नामक व्यक्ति के दिनांक 19.04.2024 के हलफनामे को इस माननीय न्यायालय के वकील द्वारा भगवान सिंह के हस्ताक्षर की पहचान करने के बाद ही सत्यापित किया। हालांकि, सत्यापित हलफनामा वकील द्वारा ले लिया गया। वह फिर से नहीं आया, इसीलिए अभिसाक्षी नोटरी रजिस्टर में प्रविष्टि नहीं कर पाया।"

इसे नोटरी की ओर से कदाचार मानते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि रजिस्ट्री अपने आदेश की कॉपी उचित कार्रवाई के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया और भारत सरकार को भेजे।

न्यायालय उस मामले पर विचार कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता ने एसएलपी दाखिल करने से इनकार किया था। उसका प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया। प्रतिवादियों ने न्यायालय को बताया कि एसएलपी में आरोपित आदेश ने 2002 के नीतीश कटारा हत्याकांड में एकमात्र गवाह के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया और एसएलपी उसके खिलाफ झूठे मामले को जारी रखने के प्रयास में दायर की गई (याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना)।

मामले की सुनवाई हो रही थी तो संबंधित नोटरी ने उपस्थित होकर वकील द्वारा उसके हस्ताक्षरों की पहचान के आधार पर याचिकाकर्ता के हलफनामे को उसकी अनुपस्थिति में सत्यापित करने की गलती स्वीकार की।

सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए नोटरी ने न्यायालय से माफी भी मांगी।

जिस दिन मामले में आदेश सुरक्षित रखे गए, उस दिन हेगड़े ने आग्रह किया कि पीठ इस बात पर विचार करे कि नोटरी की ओर से कोई दुर्भावना शामिल नहीं थी। हालांकि, जस्टिस त्रिवेदी ने पलटवार करते हुए कहा कि यह "कर्तव्य की स्पष्ट अवहेलना" थी।

सामग्री को देखने के बाद न्यायालय ने निर्णय में पाया कि याचिकाकर्ता के हलफनामे को संबंधित नोटरी द्वारा उसके समक्ष उपस्थित हुए बिना ही नोटरीकृत किया गया। इसे एसएलपी ज्ञापन के साथ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। तदनुसार, इसने रजिस्ट्री को उचित कार्रवाई के लिए आदेश की एक प्रति बीसीआई और भारत सरकार को भेजने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: भगवान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) डायरी नंबर 18885/2024

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