अनधिकृत अधिकारी द्वारा मांस का नमूना एकत्र किए जाने पर कर्नाटक गोहत्या रोकथाम अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-03-05 07:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि कर्नाटक गोहत्या रोकथाम और मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1964 के तहत कोई मामला टिकाऊ नहीं है, जब मांस का नमूना ऐसे अधिकारी द्वारा जब्त किया गया, जो ऐसा करने के लिए अधिकृत नहीं है।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसने कर्नाटक गोवध रोकथाम और मवेशी संरक्षण अधिनियम के तहत एफआईआर इस आधार पर रद्द कर दी गई कि नमूना अनधिकृत अधिकारी द्वारा जब्त किया गया।

अदालत मामला रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले मुखबिर द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।

इस अधिनियम की धारा 10 का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अधिकृत व्यक्ति की शक्ति केवल प्रवेश और निरीक्षण तक ही सीमित है। हालाँकि, मौजूदा मामले में सहायक निदेशक, जो अधिकृत व्यक्ति है, उसने न केवल मांस का नमूना एकत्र किया, बल्कि उसे विश्लेषण के लिए भी भेजा।

जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने स्पष्ट रूप से माना कि उक्त व्यक्ति के पास नमूना एकत्र करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह "पूरी तरह से अवैध" है। न्यायालय ने यह भी पाया कि यह वसूली आरोपी व्यक्तियों को कोई नोटिस दिए बिना हुई।

खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा,

“मामले की जड़ यह है कि मांस का नमूना सहायक निदेशक द्वारा एकत्र किया गया, जिसके पास नमूना एकत्र करने के लिए कानून में कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने पहले से तीसरे उत्तरदाताओं को नोटिस देने के बाद भी नमूना एकत्र नहीं किया। इस प्रकार, सहायक निदेशक द्वारा नमूना एकत्र करने का कार्य पूरी तरह से अवैध है।''

अपीलकर्ता खुद को मानद पशु कल्याण अधिकारी होने का दावा करता है। उसने पशु मेडिकल विभाग के सहायक निदेशक से प्रतिवादियों के गोदाम में गाय के मांस के अवैध भंडारण का आरोप लगाते हुए शिकायत की। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने अन्य बातों के अलावा, तर्क दिया कि कोल्ड स्टोरेज से एकत्र किया गया नमूना डीएनए टेस्ट के लिए भेजा गया। जांच में पता चला कि मांस गाय का है।

न्यायालय ने इस तथ्य पर अपना ध्यान आकर्षित किया कि नमूना किसी पुलिस अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि सहायक निदेशक द्वारा एकत्र किया गया। न्यायालय ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि सहायक निदेशक अधिनियम के तहत अधिकृत व्यक्ति है, उसके पास किसी भी मांस के नमूने को जब्त करने की कोई शक्ति नहीं है।

यह मानते हुए कि नमूना विश्लेषण के लिए भेजने से पहले अवैध रूप से प्राप्त किया गया, न्यायालय ने कहा:

“यह वह नमूना है, जिसे रासायनिक विश्लेषण के लिए भेजा गया। इस प्रकार, अभियोजन का पूरा मामला अनधिकृत और अवैध रूप से एकत्र किए गए मांस के नमूने पर आधारित है। इसलिए जब हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करके हस्तक्षेप किया तो वह सही है।”

इसे देखते हुए न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की पुष्टि की और अपील खारिज की।

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