बाद के बयानों में मामूली विसंगतियां, यदि विश्वसनीय और सुसंगत पाई जाती हैं तो पहले मृत्यु पूर्व कथन को कमज़ोर नहीं करतीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (29 अक्टूबर) को मृतका द्वारा दिए गए पहले मृत्यु पूर्व कथन के आधार पर महिला की हत्या के आरोप में दोषसिद्धि बरकरार रखी। कोर्ट ने कहा कि कई मृत्यु पूर्व कथनों के बावजूद, यदि वह विश्वसनीय, सुसंगत और पुष्टिकारी साक्ष्यों द्वारा समर्थित है तो पहले कथन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की खंडपीठ ने गुजरात हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें अपीलकर्ता-आरोपी को बरी करने के फैसले को पलट दिया गया। खंडपीठ ने कहा कि पीड़िता द्वारा उपस्थित चिकित्सक के समक्ष दिया गया पहला मृत्यु पूर्व कथन विश्वसनीय और सुसंगत था। इसमें अपीलकर्ता पर उस पर मिट्टी का तेल डालकर उसे आग लगाने का स्पष्ट आरोप था।
अपीलकर्ता-अभियुक्त ने तर्क दिया कि चूंकि मृतक पीड़िता द्वारा दिए गए तीन मृत्यु-पूर्व कथनों में विसंगतियां हैं, इसलिए उसे संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए और अपराध से बरी किया जाना चाहिए। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने कहा कि कई मृत्यु-पूर्व कथनों के मामले में प्रत्येक कथन को उसके साक्ष्य मूल्य के आधार पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जाना चाहिए। एक कथन को दूसरे कथन की विषय-वस्तु के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
अपील खारिज करते हुए जस्टिस पंचोली द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि बाद के मृत्यु-पूर्व कथनों में मामूली भिन्नताएं पहले कथन की विश्वसनीयता को कम नहीं करतीं। कोर्ट ने पाया कि जलने से हुई मृत्यु की पुष्टि मेडिकल साक्ष्यों से होती है, जिससे पहला कथन घटना का सबसे स्वाभाविक, स्वतःस्फूर्त और विश्वसनीय विवरण बन जाता है।
अदालत ने कहा,
"हमारा मानना है कि सिर्फ़ इसलिए कि अभियोजन पक्ष के गवाह द्वारा मृत्युपूर्व बयान और घटना के घटित होने के तरीके के संबंध में दिए गए बयान में मामूली विसंगतियां हैं, मृतक द्वारा स्वतंत्र गवाह, यानी पीडब्लू-3 के समक्ष दिए गए पहले मृत्युपूर्व बयान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पहले मृत्युपूर्व बयान का समर्थन स्वतंत्र दस्तावेज़ी साक्ष्यों से होता है।"
तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई और दोषसिद्धि बरकरार रखी गई।
Cause Title: JEMABEN Versus THE STATE OF GUJARAT