पीड़ित के ब्लड ग्रुप से मिलते-जुलते हथियार की बरामदगी ही हत्या के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान राज्य द्वारा दायर अपील खारिज की, जिसमें हत्या के एक आरोपी को बरी किए जाने को चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित के रक्त समूह से मिलते-जुलते खून से सने हथियार की बरामदगी ही हत्या के लिए पर्याप्त नहीं है।
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने 15 मई, 2015 को हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें प्रतिवादी पर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई सजा और आजीवन कारावास खारिज कर दिया गया था।
न्यायालय ने माना,
"हालांकि, हमारे विचार में भले ही FSL रिपोर्ट को ध्यान में रखा जाए, फिर भी, इस तथ्य के अलावा कि अभियुक्त के कहने पर बरामद हथियार में मृतक के ब्लड ग्रुप (बी + वी) के समान ही ब्लड ग्रुप पाया गया, उक्त रिपोर्ट पर कोई खास बात नहीं आधारित है। राजा नायकर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2024) 3 एससीसी 481 के मामले में इस न्यायालय ने माना कि पीड़ित के ब्लड ग्रुप के समान ही रक्त से सना हुआ हथियार बरामद होना ही हत्या के आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।"
ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी को 10 दिसंबर, 2008 को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया था और उसे 100 रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
यह मामला छोटू लाल नामक व्यक्ति की हत्या से संबंधित था, जो 1 और 2 मार्च, 2007 की मध्यरात्रि को हुआ था। शुरू में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। बाद में प्रतिवादी को संदेह और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर फंसाया गया। अभियोजन पक्ष ने कथित मकसद पर भरोसा किया कि प्रतिवादी की मृतक की पत्नी पर बुरी नज़र थी। साथ ही एक हथियार की बरामदगी और FSL रिपोर्ट जो दर्शाती है कि हथियार पर ब्लड ग्रुप मृतक के ब्लड ग्रुप (बी+वी) से मेल खाता है।
अपील में राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर एक मामले में अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए आवश्यक परिस्थितियों की पूरी श्रृंखला स्थापित करने में विफल रहा है और प्रतिवादी को बरी कर दिया। इस प्रकार, अभियोजन पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की। इसने नोट किया कि अभियोजन पक्ष द्वारा उद्धृत अपराधजनक परिस्थितियां, मकसद और खून से सने हथियार की बरामदगी, सबूतों की पूरी श्रृंखला बनाने के लिए अपर्याप्त थीं।
न्यायालय ने स्वीकार किया कि हाईकोर्ट ने FSL रिपोर्ट को नजरअंदाज किया हो सकता है, जैसा कि अपीलकर्ता ने तर्क दिया था, लेकिन माना कि रिपोर्ट ने केवल हथियार पर मृतक के ब्लड ग्रुप की उपस्थिति की पुष्टि की, जो अपने आप में दोष स्थापित नहीं करता।
न्यायालय ने राजा नायकर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य में अपने पहले के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि पीड़ित के ब्लड ग्रुप से मेल खाने वाले खून से सने हथियार की बरामदगी ही हत्या के लिए दोषसिद्धि बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसने अभियोजन पक्ष के उद्देश्य के साक्ष्य को भी अस्पष्ट पाया। न्यायालय ने कहा कि वह केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब साक्ष्य केवल अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करते हों और उसकी निर्दोषता को खारिज करते हों। इसने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने ऐसा निर्णायक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया था और हाईकोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण ही एकमात्र संभव दृष्टिकोण था।
न्यायालय ने कहा,
"इस न्यायालय के निर्णयों की श्रृंखला द्वारा कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि बरी किए जाने के खिलाफ अपील में हस्तक्षेप केवल तभी किया जा सकता है, जब साक्ष्य के आधार पर एकमात्र संभावित दृष्टिकोण अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करता हो और उसकी निर्दोषता को खारिज करता हो। वर्तमान मामले में हम पूरी तरह से संतुष्ट हैं कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य पेश करने में विफल रहा। एकमात्र संभावित दृष्टिकोण हाईकोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण है, अर्थात अभियुक्त की निर्दोषता।"
हाईकोर्ट के निर्णय में कोई कमी न पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।
Case Title – State of Rajasthan v. Hanuman