अदालत के आदेश के अनुपालन में देरी मात्र से अदालत की अवमानना नहीं मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-02-10 06:12 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत के आदेश के अनुपालन में देरी मात्र से अदालत की अवमानना नहीं मानी जाएगी।

जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने अवलोकन किया,

"हमारा विचार है कि आदेश के अनुपालन में केवल देरी, जब तक कि कथित अवमाननाकर्ताओं की ओर से कोई जानबूझकर किया गया कार्य न हो, अदालत की अवमानना ​​अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित नहीं करेगा।"

अदालत की उक्त टिप्पणी आईएएस अधिकारी की याचिका पर फैसला करते समय आई, जिसे हाईकोर्ट ने अदालत के आदेश के जानबूझकर उल्लंघन के लिए दोषी ठहराया था। कोर्ट ने 1000 रुपये का जुर्माना लगाया और सजा के तौर पर 500/- जुर्माना लगाया।

यह बताना उचित होगा कि जिस आदेश की अवमानना का आरोप लगाया गया। उसका अनुपालन किया गया लेकिन उसके अनुपालन में देरी हुई।

हालांकि, हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि देरी के लिए किसी भी स्पष्टीकरण के अभाव में यह न्यायालय के आदेश का जानबूझकर उल्लंघन माना जाएगा।

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सिविल अपील दायर की।

न्यायालय ने अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही को अर्ध-न्यायिक कार्यवाही करार देते हुए कहा कि जब तक अदालत के आदेश का अनुपालन करते समय अवमाननाकर्ताओं द्वारा कोई जानबूझकर किया गया कार्य नहीं किया जाता, तब तक इसके अनुपालन में देरी मात्र होगी। न्यायालय की अवमानना अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

कोर्ट ने कहा,

"न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही प्रकृति में अर्ध-न्यायिक है। इसलिए न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि यह कार्य जानबूझकर नहीं किया गया। इसलिए वह अपीलकर्ताओं को न्यायालय की अवमानना अधिनियम के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता।"

तदनुसार, अदालत ने अधिकारी की अपील स्वीकार की और हाईकोर्ट का विवादित आदेश रद्द किया।

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