MBBS: क्या बोलने में अक्षम उम्मीदवार मेडिकल एजुकेशन कोर्स पूरा कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से जांच करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 सितंबर) को पुणे के बायरामजी जीजीभॉय सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया, जिससे यह जांच की जा सके कि 40% से अधिक बोलने और भाषा संबंधी अक्षमता से पीड़ित स्टूडेंट MBBS कोर्स में एडमिशन के लिए पात्र होगा या नहीं।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें MBBS कोर्स में एडमिशन रद्द करने के खिलाफ अंतरिम राहत देने से इनकार किया गया। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किए गए 'ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 1997' को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि 40% या उससे अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्ति MBBS कोर्स करने के लिए पात्र नहीं होंगे। उन्होंने तर्क दिया कि ये नियम दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 32 के विपरीत हैं। उन्होंने यह घोषित करने की मांग की कि ऐसे नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(जी), 21 और 29(2) के विपरीत हैं।
खंडपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसकी एडमिशन सीट रद्द कर दी गई, क्योंकि वह 44-45% भाषण और भाषा की कमी से पीड़ित था। उन्होंने प्रस्तुत किया कि वह किसी भी 'कार्यात्मक दुर्बलता या अयोग्यता' से पीड़ित नहीं था, जिससे उसकी शिक्षा पूरी करने में बाधा उत्पन्न होती। याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्रीकृत प्रवेश प्रक्रिया (CAP) राउंड 1 के परिणाम 30 अगस्त को घोषित किए जाएंगे, जबकि हाईकोर्ट ने मामले को 19 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
खंडपीठ ने ऐसे ही मामले पर ध्यान दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 55% भाषण और भाषा की कमी से पीड़ित याचिकाकर्ता की मेडिकल जांच का निर्देश दिया है। इसलिए इसने डीन, बायरामजी जीजीभॉय गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, पुणे को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया, जिससे यह जांच की जा सके कि वर्तमान याचिकाकर्ता की विकलांगता उसकी शिक्षा पूरी करने में बाधा बनेगी या नहीं।
खंडपीठ ने कहा,
"इसलिए हम डीन, बायरामजी जीजीभॉय गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, पुणे (BJGMC) को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश देते हैं, जिसमें एक या अधिक विशेषज्ञ शामिल हों, जिनके पास याचिकाकर्ता द्वारा सामना की जा रही दिव्यांगता से संबंधित डोमेन विशेषज्ञता हो। मेडिकल बोर्ड विशेष रूप से इस बात की जांच करेगा कि क्या याचिकाकर्ता की वाणी और भाषा दिव्यांगता MBBS डिग्री कोर्स करने में उसके आड़े आएगी।"
1997 के विनियमन में कहा गया कि MBBS एडमिशन के लिए पात्र होने के लिए वाणी और भाषा दिव्यांगता की आवश्यकता 40% से कम होनी चाहिए। न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि इस प्रकार गठित मेडिकल बोर्ड को उपरोक्त विनियामक आवश्यकता से प्रभावित नहीं होना चाहिए। परीक्षा 5 सितंबर को आयोजित करने का निर्देश दिया गया।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता की सीट को अगले आदेश तक खाली रखने का निर्देश देकर अंतरिम राहत भी दी।
न्यायालय ने कहा,
"अगले आदेश तक याचिकाकर्ता को आवंटित सीट खाली रखी जाएगी।"
याचिकाकर्ता को NEET के माध्यम से "दिव्यांग व्यक्ति" श्रेणी से MBBS कोर्स में एडमिशन के लिए चुना गया। उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज लातूर आवंटित किया गया। मेडिकल कॉलेज में रिपोर्ट करने और फीस का भुगतान करने की अंतिम तिथि 5 सितंबर, 2024 थी।
दिव्यांगता प्रमाणन बोर्ड, सर जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, मुंबई द्वारा जांच के बाद यह प्रमाणित किया गया कि वह मेडिकल और डेंटल कोर्स के लिए पात्र नहीं है। 1 अगस्त 16, 2024 के प्रमाण पत्र के अनुसार MMC/MCI राजपत्र अधिसूचना के अनुसार 5% PwD आरक्षण का लाभ उठाने के लिए पात्र नहीं है।
अब मामले की सुनवाई 9 सितंबर को होगी।
केस टाइटल: ओमकार बनाम भारत संघ और अन्य विशेष अनुमति याचिका (सिविल) डायरी नंबर 39448/2024