UAPA मामले में जीएन साईबाबा को बरी करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार
जीएन साईबाबा को बरी किए जाने के कुछ ही घंटों बाद महाराष्ट्र राज्य ने मंगलवार (5 मार्च) को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के हालिया फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर और मानवाधिकार कार्यकर्ता को बड़ी राहत देते हुए हाईकोर्ट ने कथित माओवादी-संबंध मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) के तहत उनकी और पांच अन्य की सजा रद्द कर दी।
जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस की बेंच ने यह फैसला सुनाया।
बाद में इस खंडपीठ ने महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर वह आवेदन भी खारिज कर दिया, जिसमें फैसले को छह सप्ताह के लिए निलंबित करने की प्रार्थना की गई थी।
साईंबाबा समेत सभी आरोपी प्रतिबंधित वामपंथी संगठनों के साथ कथित संबंधों और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में 2014 में गिरफ्तारी के बाद से हिरासत में हैं।
महाराष्ट्र सत्र अदालत में मुकदमे के दौरान, अभियोजन पक्ष ने सबूत पेश करते हुए दावा किया कि आरोपी आरडीएफ जैसे प्रमुख संगठनों के माध्यम से प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) समूह के लिए काम कर रहे थे। अभियोजन पक्ष ने जब्त किए गए पैम्फलेट और इलेक्ट्रॉनिक कंटेंट पर भरोसा किया, जिसे 'राष्ट्र-विरोधी' माना गया, जो कथित तौर पर गढ़चिरौली में जीएन साईबाबा के कब्जे में पाए गए। यह भी आरोप लगाया गया कि साईबाबा ने अबुजमाड़ वन क्षेत्र में नक्सलियों के लिए 16 जीबी का मेमोरी कार्ड सौंपा।
इसके बाद मार्च, 2017 में आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी के साथ-साथ UAPA की धारा 13, 18, 20, 38 और 39 के तहत दोषी ठहराया गया। आरोपियों में से एक पांडु पोरा नरोटे की अगस्त 2022 में मृत्यु हो गई, जबकि शेष आरोपियों में महेश तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, प्रशांत राही और विजय नान तिर्की शामिल हैं।
पोलियो के बाद हुए पक्षाघात के कारण व्हीलचेयर पर आश्रित साईबाबा ने पहले आवेदन दायर कर मेडिकल आधार पर सजा निलंबित करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि वह किडनी और रीढ़ की हड्डी की समस्याओं सहित कई बीमारियों से पीड़ित हैं। 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सजा निलंबित करने की उनकी अर्जी खारिज कर दी थी।
2022 में हाईकोर्ट ने UAPA की धारा 45(1) के तहत वैध मंजूरी की अनुपस्थिति पर जोर देते हुए प्रक्रियात्मक आधार पर उनकी सजा रद्द कर दी। बाद में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा तत्काल सुनवाई का अनुरोध करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार की विशेष बैठक में इस पर रोक लगा दी।
आख़िरकार, पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने बरी करने का फैसला पलट दिया और बॉम्बे हाईकोर्ट को मामले का नए सिरे से मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। अब रिटायर्ड जज एमआर शाह की अगुवाई वाली पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हाईकोर्ट को अपने पहले के आदेश से प्रभावित हुए बिना मंजूरी के सवाल सहित सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए।
जस्टिस शाह ने कहा था,
राज्य के लिए यह तर्क देना खुला होगा कि मुकदमे की समाप्ति के बाद एक बार जब किसी आरोपी को दोषी ठहराया जाता है, तो मंजूरी की वैधता या उसकी कमी महत्वहीन हो जाएगी।
अब महाराष्ट्र राज्य ने जीएन साईबाबा और सह-आरोपियों को हाल ही में बरी किए जाने को चुनौती देते हुए एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।