पर्यावरणीय मंज़ूरी को चुनौती देने की समय-सीमा, इसके सार्वजनिक संप्रेषण की सबसे प्रारंभिक तिथि से शुरू होती है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-11-19 14:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) के विरुद्ध अपील दायर करने की समय-सीमा पर्यावरणीय मंज़ूरी के सार्वजनिक संप्रेषण की सबसे प्रारंभिक तिथि से मानी जाएगी।

कोर्ट ने सेव मोन रीजन फेडरेशन एवं अन्य बनाम भारत संघ, 2013(1) अखिल भारतीय NGT रिपोर्टर 1 के NGT के निर्णय का समर्थन किया, जिसमें कहा गया कि "पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, परियोजना प्रस्तावक और अन्य का दायित्व है कि वे किसी भी पीड़ित व्यक्ति को पर्यावरणीय मंज़ूरी के बारे में सूचित करें और यह भी माना कि जहां विभिन्न हितधारकों को आदेश की सूचना देनी है, वहां जिस तिथि को संप्रेषण किया जाता है, वही पर्यावरणीय मंज़ूरी के विरुद्ध अपील दायर करने की समय सीमा मानी जाएगी।"

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस मामले पर फैसला सुनाते हुए की, जिसमें अपीलकर्ता-ताल्ली ग्राम पंचायत ने गुजरात के तल्ली और बम्बोर गाँवों में 193.3269 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली चूना पत्थर खनन परियोजना के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट को पर्यावरण मंजूरी (05.01.2017) दिए जाने को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के समक्ष चुनौती दी थी। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) द्वारा पर्यावरण मंजूरी दिए जाने के खिलाफ अपीलकर्ता की अपील NGT ने समय स-मा के आधार पर खारिज कर दिया और कहा कि अपील 19 अप्रैल, 2017 को देरी से दायर की गई थी, यानी 30 दिनों की वैधानिक निर्धारित समय अवधि के बाद, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।

NGT के आदेश को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि चूंकि उन्हें पर्यावरण प्रभाव आकलन (ED) दिए जाने की जानकारी RTI के माध्यम से 14.02.2017 को ही हुई, इसलिए सीमा अवधि 14.02.2017 से मानी जानी चाहिए, न कि 05.01.2017 से। यह भी तर्क दिया गया कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 (EIA अधिसूचना, 2006") के खंड 10 के अनुसार स्थानीय दैनिक समाचार पत्र में संपूर्ण पर्यावरण प्रभाव आकलन (EC) का कोई प्रकाशन नहीं हुआ।

हालांकि, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के समक्ष अपील दायर करने की 30-दिवसीय सीमा अवधि उस प्रारंभिक तिथि से शुरू होती है, जिस दिन किसी भी जिम्मेदार प्राधिकारी द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन (EC) जनता को सूचित किया जाता है। चूंकि पर्यावरण प्रभाव आकलन मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया, इसलिए यह EIA अधिसूचना, 2006 के खंड 10 के अनुसार पर्याप्त अनुपालन था, प्रतिवादियों ने आगे तर्क दिया।

अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने पाया कि मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई पर्यावरणीय स्वीकृति (अर्थात 05.01.2017) पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान किए जाने के विरुद्ध NGT के समक्ष अपील दायर करने की समय सीमा की गणना के लिए सबसे प्रारंभिक सूचना थी।

कोर्ट ने निर्णय देते हुए कहा,

“जब निर्णय संप्रेषित करने का दायित्व कई प्राधिकारियों पर निहित होता है तो यह अनुमान लगाना उचित है कि जब 'पीड़ित व्यक्ति' को सूचना सबसे प्रारंभिक सूचना प्राप्त हो जाती है तो सूचना पूर्ण हो जाती है। यहां दी गई तालिका से यह स्पष्ट है कि 05.01.2017 को प्रदान की गई पर्यावरणीय स्वीकृति उसी दिन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई थी।”

कोर्ट प्रतिवादी के इस तर्क से सहमत था कि जब पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान करने के कई तरीके हैं तो जनता को पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान करने की सबसे प्रारंभिक तिथि पर विचार किया जाएगा।

तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

Cause Title: TALLI GRAM PANCHAYAT VERSUS UNION OF INDIA & ORS.

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